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कहानी खुसरो बाग़ की
लेखक : अजामिल
संगीत : आरम्भ का
सूत्रधार :
किसी मुल्क की सम्पन्नता उस मुल्क की साहित्यिक साँस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व की विरासत से जानी पहचानी जाती है ।
सूत्रधार दो :
जीवन्त कौमों का इतिहास और और सांस्कृतिक विरासत किसी राष्ट्र के चरित्र संकल्प और उस राष्ट्र के लोगों द्वारा देखे गए सपनों का सच बयान करते हैं ।
सूत्रधार एक :
ऐतहासिक विरासत किसी मुल्क के अतीत की चश्मदीद गवाह होती है जिसकी निशानदेही पर हम किसी मुल्क के स्वर्णिम काल का चेहरा पढ़ सकते हैं ।
सूत्रधार दो :
यह सच है क़ि एक न एक दिन हर विरासत को उम्र दराज़ होकर काल के गाल में समा जाना है ।
सूत्रधार दो : लेकिन अतीत की स्मृतियाँ तरल होती हैं जो जीवन के साथ तेज़ प्रवाह में बहती जाती हैं ।
सूत्रधार दो : नए का निर्माण पुराने के नष्ट होने पर ही निर्भर करता है इसी लिए अतीत के साक्ष्य को हमेशा के लिये सुरक्षित करना मुश्किल ही नहीं , एक बड़ी चुनौती भी रही मानव सभ्यता के सामने ।
सूत्रधार दो : पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो अपने अतीत से बहुत प्रेम करता है ।
सूत्रधार एक : वह अपने अतीत की यादों को बचाता है । उसके लिए मर मिटता है । क्योकि अतीत में ही उसकी जीवन यात्रा के पद चिन्ह होते हैं ।
सूत्रधार दो : हमारी विरासतें बोलते पद चिह्न हैं । ये हमें बताते हैं क़ि मानव सभ्यता किन रास्तों से होकर आई और इसने दुनिया को संवारने में क्या योगदान दिया ।
सूत्रधार एक :
इन पद चिह्नों को बचाने के प्रयास और संघर्ष मानव जाति के ज़िंदा रहने के सुबूत हैं ।
सूत्रधार दो :
कोई विरासत नष्ट होती है तब सम्पूर्ण विश्व इतिहास की स्मृतियों को नुक्सान पहुँचता है ।
सूत्रधार एक :
विरासतँ विश्व सभ्यता की सम्पदा का सामूहिक सरमाया है इसी लिए इसे बचाने के प्रयास में पूरी दुनिया बढ़ चढ़कर आगे रहती है ।
सूत्रधार दो :
पूरी दुनिया का यह एक ऐसा रुझान है जिसमें जीवन को गौरवपूर्ण बनाने की इच्छा समाहित है ।
सूत्रधार एक :
मानव जीवन इसीलिए समृद्ध है क्योकि मनुष्य के पास मनुष्य और मनुष्यता की विरासत है ।
सूत्रधार दो :
यह सम्पदा अतुलनीय और अमूल्य है ।
सूत्रधार एक :
भारतीय धर्म , संस्कृति और राजनीति के विषद केंद्र के रूप में तीर्थराज प्रयाग की महिमा का बखान वैदिक काल से आज तक अपनी तमाम विरासतों के साथ किया जाता रहा है । पुराणों में प्रयाग को पवित्र स्मृति माना गया है । यज्ञभूमि होने के कारण प्रयाग का पर्यावरण और गंगा यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होने के कारण पुरे विश्व की मानव सभ्यता को आकर्षित करता रहा ।
।।यज्ञ हवन के दौरान पढ़े जानेवाले मन्त्रों की ध्वनि ।। सूत्रधार दो :
सन् 1597 में बादशाह अकबर हिन्दोस्तान आया
।। घोड़ों के दौड़ने और हिनहिनाने की आवाज़ ।।
और उसने अपने रिहाइश के लिए प्रयाग को चुना । यहां के आबोहवा से वह इतना प्रभावित हुआ क़ि उसने इस जगह का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया । यह नाम आज भी प्रचलित है ।
माशाल्लाह । इतनी खूबसूरत जगह मैंने कभी नहीं देखी । लगता है ये जन्नत अल्लाह पाक ने गोया अपने रहने के लिए बसाई हो । क्यों न हम गंगा यमुना और सरस्वती जैसी नदियों के दामन में अपनी बाकी ज़िन्दगी गुज़ारें । अब हम इस जन्नत को अल्लाहाबाद कहेंगे ।
वज़ीर : वाह । जहाँपनाह आपने तो इसे अलाहबाद नाम देकर इस जगह की रौनक को दोबाला कर दिया । अब जब तक आपका दिल लगे आप यहाँ कयाम कर सकते हैं । हम आपके मन मुताबिक़ सारे इंतमज़ात करवा देते हैं । य ज़मीने हिन्दुस्तान के पीरों फकीरों की इबादतों की खुशबु से महक रही है । फिर आपके दिल में तो सभी मज़हबों के लिए इज्ज़त का समन्दर है । यहां आपका दिल लगा रहेगा । इंशाल्लाह ।
अकबर : आप बजा फ़रमा रहे हैं । यहां कुछ वक़्त गुज़ारना हमारी खुश किस्मती होगी । आप हमारे रहने का इंतज़ाम कीजिये ।
सूत्रधार एक :
इसके बाद बादशाह अकबर द्वारा संगम के करीब तामील करवाये गए विशाल किले के अलावा अल्लाहाबाद में उस दौर में कई और इमारतें ज़रूरतों के मुताबिक़ मुग़ल शासकों ने बनवाई । अकबर ने ज़्यादा वक़्त उस किले में नहीं बिताया । उसने इसे सैनिक छावनी में तब्दील किया और खुद सेना की एक टुकड़ी को साथ लेकर बनारस निकल गया ।
सूत्रधार दो :
उसी दौर में बादशाह जहाँगीर के हुक्म से आकाश छूती सराय खुल्दाबाद अल्लाहाबाद में बनाई गई । इस सरायं में कारोबार के सिलसिले में अल्लाहाबाद आने वाले कारोबारी लोग रात गुज़ारा करते थे । इस मंडी में ज़रूरत की सभी चीज़ों के अलावा घोड़े खरीदने के लिए सभी धर्मो के कारोबारी आया करते थे । बकरीद के मौके पर यहाँ पर बकरों की खरीद फरोख्त के लिए बड़ी मंडी लगती थी ।
सूत्रधार एक : उस ज़माने में सरायं खुल्दाबाद से उत्तर दिशा की ऒर 64 एकड़ के क्षेत्रफल में वर्गाकार खुसरो बाग़ बनाया गया । इस बाग़ की चौड़ी और ऊंची दीवारें पत्थरों को जोड़ कर काफी मज़बूत बनायी गयी है । मिफ्ताहुल तवारीख में ज़िक्र है क़ि किले के बचे हुए मसाले से खुस्रोबाग की दीवार को तामील करवाया गया था ।
इतिहासकार : जहाँगीर किफायत पसंद बादशाह था । आवाम से वह जो भी पैसा लेता था उसे आवाम के हित में वह बड़ा संभाल कर खर्च करता था ।
सूत्रधार दो :
खुल्दाबाद सरायं के उत्तर की ओर एक सादी बनावट वाला विशालकाय फाटक है । दक्षिण की ओर भी एक फाटक है जो सरायं खुल्दाबाद में खुलता है । 60 फ़ीट की ऊँचाईवाला यह फाटक मज़बूत लकड़ी का बना है । इसकी बनावट किसी किले या महल के दस्तूरी फाटक जैसी है । इस फाटक के ऊपरी हिस्से में फ़ारसी में खुदा हुआ है -
आवाज :
बहुक्म हज़रत शहंशाही खिलाफत पनाही ज़िल्ले इलाही नूरुद्दीन महम्मद जहांगीर बादशाह गाज़ी बहतमाम् मज़ीद ख़ास आकारज़ा मुसब्बिर ई बिनाय अली सूरत इत्माम याफ ।
सूत्रधार एक :
यानी बादशाह जहांगीर के हुक्म से आका चित्रकार के ख़ास इंतज़ाम के बाद यह बड़ी इमारत बनकर तैयार हुई । इसके करीब हिज़री सन् की तीन अंक साफ़ दीखते हैं ।
सूत्रधार दो :
खुसरो बाग़ के दक्षिण और पूर्व की तरफ कोने में जहांगीर ने एक खूबसूरत बावली बनवाई थी जिसमें साफ़ पानी भरा रहता था । यहाँ चिड़ियों की चहचहाट दिन दिन भर गुंजतीं थी । इस बावली में कमल खिले हुए थे ।
।। चिड़ियों की आवाज़ ।।
इसके साथ कुछ लोगों के बोलने बतियाने की तेज़ आवाज़ ।।
गाइड की आवाज़ :
शांत हो जाइए । शांत हो जाइए । हम जहांगीर के समय में भटक रहे है । ये वह समय था जब हिन्दोस्तान जहाँगीर की सरज़मी पर मुग़ल बादशाह जहाँगीर अपनी हुकूमत का विस्तार कर रहे थे । अरे अरे ये आप क्या कर रहे हैं । ऐतिहासिक इमारतों को नुक्सान पहुचाना ,इसकी दीवारों पर कुछ लिखना इन्हें नुक्सान पहुंचाना अपराध है । आप इस तरफ आइये ।मेरे साथ । ओके । जी आप क्या पूछ रहे थे ।
पर्यटक : हाँ क्या नाम बताया था आपने अपना । ओह् याद आया । शेरू गाइड ।
हँसी
वही पर्यटक :
शेरू तुम ये बताओ । ये खुसरो कौन था ?
गाइड :
खुसरो जहाँगीर का बेटा था । सन् 1587 में ये पैदा हुआ था । बताते हैं क़ि खुसरो बहुत ज़िद्दी था और अपनी बात मनवाने की खातिर किसी भी सीमा तक जा सकता था । पूरी दुनिया को जीत कर उस पर राज करने की उसकी ख्वाहिश ने उसे अपने अब्बा जहाँगीर की मुखालफत के लिए मजबूर कर दिया । खुसरो ने अपने अब्बा और उनकी हुकूमत की नाफ़रमानी शुरू कर दी ।
महिला पर्यटक : अपने बादशाह अब्बा की भी नाफरमानी ?
गाइड :
जी मोहरमा । अपने बादशाह अब्बा की नाफ़रमानी । इसके चलते गज़ब तो होना ही था । सन् 1606 में एक दिन खुसरो जहाँगीर के सामने जा खड़ा हुआ ।
संगीत- चेंज ओवर
खुसरो :
आप बादशाह हैं लेकिन रियाया की तकलीफों की आपको कोई फ़िक्र नहीं है । इतना वक़्त गुज़र गया । हमने सरहदों के इज़ाफ़े को लेकर कोई कोशिश नहीं की । लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं । आपको भला बुरा कहते हैं । आपको खबर है इसकी ? बादशाह को कुँए का मेढक नहीं होना चाहिए ।
जहाँगीर :
पूरी दुनिया को गुलाम बनाकर हुकूमत करना क्या ज़रूरी है ? अल्लाह ने हुकूमत के लिए जितना हमें अता फरमाया है , वो कम तो नहीं ।
खुसरो :
क्या कह रहे हैं आप ? हुकूमत ऐसे की जाती है । उम्र का असर आप पर दिखने लगा है । आप आराम कीजिये ।अब मुझे ही कुछ करना होगा । हम समझ गए आप से अब कुछ न होगा । आपके तस्बीह घुमाने और अल्लाह अल्लाह करने कुछ नही होने वाला ।
संगीत -चेंज ओवर
गाइड :
इसके बाद खुसरो ने लाहौर फतह के इरादे से बिना जहाँगीर के हुक्म के गुपचुप तैयारी शुरू की । वह राज्य की सेना को लड़ाई में झॉकना चाहता था । तोपों की साज संवार शुरू हो गयी । बारूद का इंतज़ाम किया जाने लगा । बे आवाज़ हो रही इस तैयारी की खबर जब जहाँगीर को लगी तो उसने खुसरो को तलब किया ।
संगीत : चेंज ओवर
जहाँगीर : ये हम क्या सुन रहे हैं मियां । मालुम हुआ क़ि आप जंग की तैयारी कर रहे हैं?
खुसरो :
आपने ठीक सुना है । आपको खुश होना चाहिए क़ि हम जंग जीत कर सरहदों का इज़ाफ़ा चाहते हैं । क्या ये किसी बादशाह के लिए ज़रूरी नहीं क़ि वह राज्य का विस्तार करे ?
जहाँगीर :
जरूरी हो तब भी आपको इसके लिए हमसे इजाज़त लेनी चाहिए ।
खुसरो:
बे शक लेनी चाहिए । लेकिन हम आपकी औलाद हैं । कुछ हक़ तो हमारे भी हैं ।
जहाँगीर :
जंग अच्छी चीज़ नहीं है बरखुरदार । जंग में किसी की जीत नहीं होती । जंग में सिर्फ हार होती है , सिर्फ हार ।
खुसरो :
हम जीतेगे अब्बा । ये यकीन आपको क्यों नहीं है ?
जहाँगीर :
यकीन है हमें आपपर । यक़ीन है । लेकिन हमें अल्लाह का खौफ है । कयामत के रोज़ हमें अपनी ज़्यादतियों का जवाब देना होगा । जंग का ख्याल आपको दिल से निकालना होगा । इसमें बे बुनाहों का खून बहेगा । दोनों राज़्यों की रियाया को तकलीफ होगी । हम तुम्हें क़तले आम की इजाज़त नहीं दे सकते । आपको अपना ये इरादा मुल्तवी करना ही होगा ।
खुसरो :
न करूँ तो ?
जहाँगीर : तो हम आपको ज़बरदस्ती रोक देगें । आप भूल रहे हैं क़ि हम सिर्फ आपके अब्बा नहीं है , बादशाह भी हैं ।
खुसरो :
अगर मैं बागी हो जाऊं तो
जहाँगीर :
बरखुदार , आप जो कह रहे हैं उसे सोच नहीं रहे हैं । आपके साथ हम वही सुलूक करेंगे जो एक बादशाह बागियों के साथ करता हैं । आप बख्शे नहीं जाएगें ।
खुसरो : ठीक है । तो हम इसी वक़्त आपका हुक्म मानने से इनकार करते हैं ।आप समझ लीजिये क़ि
संगीत - चेंज ओवर
गाइड :
और बगावत हो गयी । जहाँगीर के हुक्म की मुखालफत करते हुए खुसरो ने सेना की एक टुकड़ी के साथ लाहौर फतह के लिए कूच करने की योजना बनायी जिसकी खबर गुप्तचरों के ज़रिये जहाँगीर को उसी वक़्त लग गयी । खुसरो फौरन गिरफ्तार कर लिया गया । बागी की सजा उस ज़माने में मौत हुआ करती थी । खुसरो को मौत की सजा मिलनी चाहिए थी लेकिन जहाँगीर खुसरो का बाप भी था लिहाज़ा उसने खुसरो की मौत की सजा को रियाया के कहने पर मुआफ़ कर दिया लेकिन उसकी आँखें निकलवा लीं ।
।। चीखने चिल्लाने की आवाज़ वायलन के साथ खामोश हो जाती है । ।
गाइड :
और खुसरो की आँखें निकलवाने के बाद उसे बुरहानपुर जेल के कैदखाने के अँधेरे में डलवा दिया गया ।
संगीत चेंज ओवर
सूत्रधार एक:
खुसरो बाग़ के बीचों बीच थोड़ी थोड़ी दूर पर चार भव्य इमारतें बनी हुई हैं । इनके बीच दो खूबसूरत जलकुंड बनाये गए हैं । इसमें कभी पानी के फौव्वारे चला करते होंगे ।
सूत्रधार दो :
खुसरो बाग़ के पूर्ववाली गुम्बददार इमारत एक मंज़िल कीें है जो पत्थर की बनी है । यह खुसरो की कब्र है । इस इमारत की दीवारों पर और गुम्बद के आसपास फ़ारसी के बहुत से शेर लिखे हैं । इन शेरों का खुसरो की कब्र से कोई ताल्लुक नहीं है । इन शेरों में आध्यात्मिक और नीतिगत बातों की चर्चा हैं ।
संगीत चेंज ओवर
गाइड : खुसरो की कब्र के यहां होने के कारण ही यह जगह खुसरो बाग़ कहलाती है । इतिहास बताता है क़ि अँधा कर दिए जाने के बाद भी खुसरो की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं । जहाँगीर को खुसरो पर बड़ी दया आती । आखिर वह खुसरो का अब्बा जो ठहरा । वह खुसरो के जेल मेंं रहने के बावजूद उसकी मदद करता रहता । सन् 1622 में जब खुसरो बुरहानपुर जेल में था तब उसके भाई खुर्रम से उसकी मुलाक़ात हुई । जेल में खुसरो की शान शौकत देखकर खुर्रम खुश होने की जगह बहुत घबरा गया । उसे लगा क़ि उसके अब्बा जहाँगीर सारा राजपाट कहीं खुसरो पर दया करके न देदें । यह ख़याल आते ही उसने अपने भाई खुसरो को अपने रास्ते से हटाने की योजना बनायी । एक दिन उसने बुरहानपुर के एक बधिक को अपने पास बुलाया और खुसरो की हत्या के लिए धन का प्रलोभन देकर उसे राजी कर लिया ।
संगीत चेंज ओवर
खुर्रम :
तुम समझ गए क़ि तुम्हे क्या करना है । किसी भी हालत में खुसरो को ज़िंदा नहीं बचना चाहिए ।
हत्यारा :
आप मुझसे ऐसा करने को क्यों कह रहे हैं । आपको सिर्फ शुबहा है क़ि बादशाह आपको सल्तनत से महरूम कर देंगे इसलिए ? इस शुबहा की वजह से भाई का कतल करवा देना आपको ठीक लग रहा है ।
खुर्रम :
आपसे जो कहा गया है उसे करें । ज़्यादा सोचना आपके लिए भी ठीक नही होगां । जाइए और जो कहा गया है ,उसे हमारा हुक्म समझ कर पूरा कीजिये । कोई गड़बड़ होगी तो आप भी ज़िंदा नहीं बचेंगे । जाइए ।
संगीत चेंज ओवर
गाइड :
किराये के बधिक ने बुरहानपुर जेल में जब खुसरो अकेला बैठा अल्लाह को याद कर रहा था , तभी खुर्रम के भेजे हत्यारे ने दबे पाँव वहां पहुँच उस पर खुखरी से वार किया और उसकी हत्या करदी । आँखों से महरूम खुसरो खूब चिल्लाया लेकिन किसी ने वहां पहुंचकर उसे नहीं बचाया । वह खून में लथपथ वही ज़मीन पर गिरा और तड़प तड़प कर मर गया । खुर्रम ने आनन फानन में इंतज़ाम कर उसकी लाश को सुपुर्दे ख़ाक कर दिया । इधर खुर्रम ने अपने अब्बा जहाँगीर को खबर कर दी क़ि खुसरो पेट दर्द की असहनीय पीड़ा से तड़प कर मर गया । यह एक ऐसा सदमा था जिसने जहाँगीर को तोड़ कर रख दिया । खुर्रम ने खुसरो की मौत की असलियत को भी बुरहानपुर के कब्रिस्तान में खुसरो के साथ दफना दिया ।
सूत्रधार दो:
खुसरो को मौत के बाद भी कब्र में चैन न मिला । आवाम की मांग पर उसका शव बुरहानपुर कब्रिस्तान से निकालकर आगरा लाकर एक बार फिर दफना दिया गया । यहां लोग उसकी कब्र की पूजा करने लगे । उसकी पक्की मज़ार बनाने की तैयारी होने लगी ।
सूत्रधार एक :
यह बात खुसरो की सौतेली माँ नूरजहाँ को नागवार गुज़री । उसने तूफ़ान खड़ा कर दिया । वह खुसरो से पहले ही नफरत करती थी । जहाँगीर ने नूरजहाँ को बहुत समझाया ।
संगीत चेंज ओवर
जहाँगीर : ये आप क्या कर रही हैं । आखिर खुसरो आपकी भी औलाद है । वह इस जहां से जा चूका है । उससे कोई भूल हुई हो तो हम उसे मुआफ़ी देने की आपसे दरख्वास्त करते हैं। जो अब ज़िंदा नहीं है ,उसकी नाफार्मानिया भुला देनी चाहिए ।
सूत्रधार एक :
नूरजहाँ जानती थी क़ि खुसरो के रहते खुर्रम को जहाँगीर कभी राजपाट नहीं सौपेंगें क्योकि वह खुसरो से बेपनाह मोहब्बत करते थे । नूरजहां खुद भी आगरा में कयाम कर रही थी । वह नहीं चाहती थी क़ि खुसरो की याद के कोई भी सुबूत आगरा में हों । लिहाज़ा उसने जहाँगीर से कहा क़ि -
संगीत चेंज ओवर
नूरजहाँ : हमें भी खुसरो से मोहब्बत है । हम चाहते हैं क़ि मौत के बाद उसे कब्र में सुकून मिले । हम इसीलिए उसकी कब्र किसी ऐसी जगह पर चाहते हैं जहां सियासत का शोर उसे परेशान न करे और वह कब्र में चैन की नींद सो सके ।
सूत्रधार दो :
जहाँगीर नूरजहाँ की चाल को समझ न सका । नतीज़तन वह वक़्त जल्द आ गया जब खुसरो की आगरा स्थित कब्र को एक बार फिर खोदा गया और उसके शव को पूरी सुरक्षा व्यवस्था में आगरा से इलाहाबाद लाकर खुल्दाबाद सरांय में दफना दिया गया । जहाँगीर ने अपने बेटे खुसरो की याद को हमेशा के लिए बनाये रखने के इरादे से उसकी कब्र को एक बड़ी और भव्य इमारत में तब्दील करवा दिया । वहां एक बाग़ बनवाया और उसे नाम दिया खुसरो बाग़ । इसके बाद खुर्रम को जहाँगीर ने बादशाहत अता फ़रमाई । यही खुर्रम आगे चलकर मुगलकालीन इतिहास में शाहजहाँ के नाम से प्रसिद्द हुआ । इतिहासकार डॉक्टर बेनीप्रसाद ने अपनी किताब जहाँगीर में इसका ज़िक्र तफ़सील से किया है ।
संगीत चेंज ओवर
तालियों की आवाज़
गाइड:
शुकिया आप सबका शुक्रिया । अब आप सब इस तरफ देखिये । यहाँ से । सब इस तरफ तशरीफ़ ले आएं । ये जो आप एक और दो मंज़िला इमारत देख रहे हैं ये संन 1625 ईस्वी में बनना शुरू हुई थी लेकिन ये बनकर मुकम्मल हुई थी सन् 1632 में ।
पर्यटक : क्या ये भी किसी की कब्र है ?
गाइड : जी ठीक समझे आप । ये भी कब्र है । इसे खुसरो की बहिन सु्ल्तानुन्निसा ने अपने ज़िंदा रहते तामील करवाया था। लकिन अफ़सोस
सु्ल्तानुन्निसा के इंतकाल के बाद उसे इस कब्र में दफनाया नहीं जा सका । ये कब्र आज भी खाली पड़ी है ।
एक मसखरा पर्यटक :
अच्छा तो इसे मेरे लिए बुक कर दीजिये ।
ज़ोरदार ठहाका ।
गाइड : जनाब आपको ये कब्र पसन्द आ रही है और सु्ल्तानुन्निसा को ये कब्र मुकम्मल होने के बाद पसन्द नहीं आई । इसलिए उसकी राय बदल गयी । लिहाज़ा जब उसका इंतकाल हो गया तब उसे सिकन्द्ररे में अकबर की कब्र के बगल में नयी कब्र तामील करवाकर दफन कर दिया गया ।
संगीत चेंज ओवर
सुत्रधार एक :
सु्ल्तानुन्निसा के लिए बनी ये कब्र आज भी खाली है । इस दो मंज़िला इमारत की दीवारों का रंग बेहद चटकीला है और दूर से चमकता है । इमारत की नक्काशी मुगलकालीन स्थापत्य कला का अनुकरण है । सभी आकार बहुत साफ़ और खूबसूरत हैं ।
सूत्रधार दो :
इस इमारत की बाहरी दीवारों पर फ़ारसी भाषा में पचास के लगभग शेर उकेरे गए हैं । जिनमें उपदेश चेतावनी संसार की असारता और बैराग्य आदि के बाबत ज़िक्र किया गया है ।
सूत्रधार एक :
इस इमारत के पश्चिम दिशा की ओर खुसरो की माँ शाह बेगम की तीन मंज़िला खूबसूरत कब्र है । इसके ऊपरी भाग में गुम्बद्दार छतरी बनायी गयी है । असली कब्र इस इमारत की सबसे नीचे वाली मंज़िल में है लेकिन इस कब्र का संगेमरमर का बना नकली आकार ऊपर की मंज़िल पर स्थापित कर दिया गया है । शाहबेगम की
मौत सन् 1603 में अफीम के ज़्यादा खा लेने की वजह से हुई थी ।
सुत्रधार एक :
शाहबेगम की संगेमरमर की कब्र के दोनों ओर फ़ारसी में दो शेर उकेरे गए हैं जिनका तर्जुमा करने पर शाहबेगम के जन्म और मृत्यु की पुख्ता जानकारी मिलती है । कुछ और शेर भी लिखे हैं जो शाहबेगम के अच्छे चरित्र की ओर इशारा करते हैं ।
उनके बारे में कहा गया है -
आवाज :
शाहबेगम ने अपने सतीत्व से ईश्वर के दयारूपी मुख मंडल की शोभा बढ़ाई और परलोक को अपने गौरव की ज्योति से सुसज्जित किया । शाहबेगम की असीम पवित्रता की क्या प्रसंशा की जाए जिसने अपने सुकर्मो से स्वर्ग के मुख को उज्ज्वल कर दिया है ।
सूत्रधार एक :
खुसरो बाग़ में ये तीनो इमारतें एक दूसरे के करीब करीब बनी हुई हैं । खुसरो बाग़ में एक चौथी इमारत भी है जो तीनों इमारतो से कुछ दूर पर है । इसमें कोई कब्र नहीं है । यह गोलाकार एवम् गुम्बदकार है । इसे तम्बोली बेगम का महल कहा जाता है । तम्बोली शब्द इस्तबोली का अपभ्रंश लगता है । तंबोली बेगम कौन थी इसकी कोई जानकारी कहीं नहीं मिलती ।
सूत्रधार दो :
सन् 1632 इतिहासकार पीटर मुंडी ने खुसरो बाग़ को देखकर कहा था -
आवाज : मैं आज शाम खुसरो बाग़ गया । यह अनोखी जगह है । यहाँ की हरयाली सुकुनजदा है । यहाँ शान्ति है ।यहां तीन कब्र हैं । खुसरो की , उसकी माँ की और उसकी बहिन की । खुसरो की कब्र के सिरहाने वह कुरआन रखा है जिसको पढ़ते हुए वह मारा गया था ।
सूत्रधार दो : सन् 1824 में खुसरो बाग़ को देखकर एक और इतिहासकार विशप हेबर ने लिखा था -
आवाज़ :
खुसरो बाग़ की ये सभी इमारतें पवित्र , भावजनक, मर्मस्पर्शी और बेहद खूब सूरत हैं । मुगलकालीन स्थापत्य कला को इनकी बनावट में देखा जा सकता है ।इनमें इस्तेमाल किये गए पत्थर रंगीन और चमकीले नहीं हैं । शिल्पकारों ने साधारण में ही असाधारण रच दिया है । इन इमारतों के आगे इंग्लैंड की स्थापत्य कला फीकी लगती है ।
सूत्रधार दो :
पीढ़ियों पर पीढियां गुज़र गयीं । खुसरो की याद को सहेजे हुए खुसरो बाग़ सराय खुल्दाबाद की ही नहीं बल्कि इल्लाहाबाद की शान में चार चाँद लगाता आज भी मौजूद है । लोग यहां बनी कब्रों के वास्तु शिल्प और कला और इस्लामी लिखावट के सुंदर नमूने को देखन केे लिए दूर दूर से आते हैं और मुगलकालीन सत्ता संघर्ष की सत्यकथा से जुड़कर गर्व का अनुभव करते हैं ।
सूत्रधार दो :
इतिहास की बहुमूल्य विरासत को सिर्फ औपचारिक सुरक्षा उपायों से ही नहीं बचाया जा सकता । हमें अपनी विरासत से प्यार भी करना होगा । और इसका सम्मान करना भी सीखना होगा । इतिहास भूलने का पाठ नहीं है । इतिहास मानव अनुभवों का एक ऐसा विशाल संग्रह है जो वर्तमान संवारने में हमारी मदद करता है ।
संगीत : समाप्त
अजामिल
9889722209
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