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Monday, April 26, 2021

अविस्मरणीय कौमुदी का प्रकाशन एक प्रयोग

बात बहुत पुरानी है लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की सकारात्मक और रचनात्मक सोच को दर्शाती है और हमें यह बताती है कि 70 के दशक में हिंदी विभाग के अध्यापक किस तरह से छात्रों के साथ जुड़े हुए थे और उनके सर्वांगीण विकास और उनके व्यक्तित्व निर्माण को लेकर उनकी चिंता लगातार चलती रहती थी। 
       सन 74 में हिंदी विभाग के छात्र यूनियन के अध्यक्ष स्वर्गीय कृष्ण कुमार मालवीय चुने गए थे । इनकी इच्छा थी कि अपने कार्यकाल में वह कुछ ऐसा करें जिससे उनकी स्मृति और उनके साथियों की स्मृति बनी रहे। हम सभी मित्रों ने उस समय यह तय किया कि हम हिंदी विभाग से निकलने वाली पत्रिका 'कौमुदी' का कविता विशेषांक निकालेंगे । सब यह भी चाहते थे कि उसमें हिंदी विभाग के पुराने और नए छात्र कवियों की कविताओं का समावेश किया जाए। हमने तैयारी शुरू की और देखते- देखते कौमुदी के लिए उस दौर के अनेक चर्चित छात्र कवियों की रचनाएं हमें प्राप्त हो गई । इनमें राकेश ओझा, राकेश जौहरी नीलकंठ राकेश , अरविंद चतुर्वेद , कैलाश गौतम , शैलेश भागवत ,आर्य रत्न व्यास अजामिल, शुभा बंधोपाध्याय , अनीता गोपेश और कृष्ण कुमार मालवीय की कविताएं इस कविता विशेषांक में शामिल हुई। 
         लगभग सभी कवियों का यह शुरुआती दौर ही था । बहुत से कवियों ने कविता लिखना इसी अंक के साथ शुरू किया था लेकिन बहुत से कवि इस अंक में ऐसे भी थे जिनकी एक पहचान कमोबेश कविता जगत में बनती जा रही थी । इस विशेषांक में शामिल कविताओं में उस दौर की समकालीन परिस्थितियों और चिंताओं को देखा जा सकता है । सुखद यह रहा कि इन कविताओं के प्रकाशन के बाद विशेषांक में शामिल बहुत से कवि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल हुए और उनकी चर्चा इलाहाबाद और इलाहाबाद के बाहर होने लगी । ये कवि कवि -गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में भी आमंत्रित किए जाने लगे । 
         उस समय के साहित्यकारों ने भी इन नए कवियों को अपना प्यार और सम्मान दिया । नतीजा ये हुआ कि छात्र - कवियों के बीच एक माहौल बन गया और बहुत से छात्र कवि कविताएं लिखने लगे। विशेषांक में शामिल 9 कवियों की कविताओं पर उस समय हिंदी विभाग के अध्यक्ष लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने सामायिक कविता : एक दृष्टि शीर्षक से इस अंक में एक समीक्षात्मक लेख भी लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि इस अंक में अनेक ऐसे कवि हैं जिनकी संवेदना सराहनीय है , भाव विचार एवं शिल्प की दृष्टि से उनके अपने व्यक्तित्व हैं, उनमें उत्साह है तथा अभिव्यक्ति की अपनी एक लगन है और यह शुभ चिन्ह है । 
        डॉक्टर लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय का यह आशीर्वाद रंग लाया था और बहुत जल्दी ही इस विशेषांक में शामिल कवि हिंदी कविता जगत में अपना एक मुकाम बनाने में कमोबेश सफल हुए और इन कवियों की कविताएं देश की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होने लगी थी । 
         इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग हमेशा से कुछ नया और अनोखा करने के प्रयास में लगा रहा है । इसकी सीधी वजह रही कि इस विभाग को आरंभ से ही बहुत अच्छे अध्यापक , जिनमें से अधिकतर साहित्यकार रहे , पठन-पाठन के लिए मिलते रहे । कौमुदी का वह कविता विशेषांक आज मुझे अपनी पुस्तकों के संग्रह में मिल गया । यह एक सुखद संयोग रहा । मुझे लगा कि इस कविता विशेषांक के बारे में आप सभी लोगों को बताना चाहिए । इस अंक का आवरण फट चुका है लेकिन आवरण था बहुत खूबसूरत । कृष्ण कुमार मालवीय ने इसे बनवाने में पूरा प्रयास किया था । यह बात भी बताना आपको बहुत जरूरी है कि इस अंक का संपादन जब किया जा रहा था, उस समय डॉक्टर जगदीश गुप्त, डॉक्टर रघुवंश , डॉक्टर रामस्वरूप चतुर्वेदी, दूधनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हम छात्रों का सहयोग कर रहे थे , जिसकी वजह से इस अंक को बेहतर बनाने में हमें बड़ी मदद मिली। यह इस बात का भी संकेत है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यापकों ने कभी अपने को छात्रों से दूर करके नहीं देखा बल्कि मिलजुल कर काम करने में हमेशा आगे रहे।
** अजामिल

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