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Wednesday, November 2, 2011

दरवाजे पर दस्तक तो दो........

चिन्तकों, बौद्धिकों और बुद्धिजीवियों
दुनिया में चीजें जबकि बहुत तेजी से
बेतरतीब हो रही हैं- कोई हमारा पीछा कर रहा है
सपने और नींद के बीच कोई रिश्ता नहीं बचा है
प्रेम और आत्मीयता की प्रदूषित हो चुकी हैं नदियां
गैरजरुरी बातों पर जरुरी मानी जा रही हैं- बहस
तमाशबीनों के जश्न में खड़े होकर
तालियाँ मत बजाते रहो-
मन की इच्छाओं, जरुरतों, अपेक्षाओं और दहशत की
हदों से बाहर निकलो और देखो
कि कैसे जन्म ले सकता है- कोई पवित्र फूल।
एक सतत चुनौती के सामने
चीजें रहस्य से दूर हो जाती हैं-

जानकारी से भर देती है हमें बाहरी दुनिया
निर्दोष बनाता है- भीतरी विकास !
जैसे पवित्र होता है- बच्चे का मन !

बंधन केवल भयभीत लोगों के लिये है
मुक्ति के पार जाने के लिये बंधनमुक्त होना होगा
सबसे पहले !

दरवाजे पर दस्तक तो दो....
दुनिया में चीजें बहुत तेजी से
बदल रही हैं..........

1 comment:

  1. बंधनमुक्त होने की पावन प्रेरणा ध्वनित करती सुन्दर कविता!
    सादर!

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