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Saturday, April 24, 2021

आलेख:साहित्य और रेल / अजामिल

साहित्य , समाज में मौजूद चरित्र और विचारों का ही आईना नहीं है , साहित्य में केवल हमारे संघर्षों की कहानियां ही नहीं है , बल्कि इसमें लाखों - लाख  ऐसे प्रतीक मौजूद हैं,जो साहित्य की शक्ति को न सिर्फ प्रभावशाली बनाते हैं बल्कि जिनके बगैर साहित्य में कोई बात मुकम्मल हो ही नहीं सकती । यह लाखों - लाखों प्रतीक साहित्य ने हमारे जीवन से ही लिए है और उन्हें नए-नए अर्थों में ढाल कर इस समाज को 
लौटया है । प्रतीकों के चयन के मामले में साहित्य की उड़ान किसी दिशा में कभी प्रतिबंधित नहीं रही । साहित्य में प्रतिक कभी वर्जित नहीं रहे , शायद यही वजह है कि साहित्य में मामूली- से- मामूली चीज भी साहित्यकार के प्रयोग से खिल उठी और उसे नई अर्थ वत्ता मिल गई । 
       भाप की शक्ति को पहचान कर स्टीम इंजन का आविष्कार करनेवाले जेम्स वाट ने कभी सोचा भी ना होगा कि उसके बनाए विशालकाय काले- कलूटे रेल इंजनों से भारी- भरकम रेलगाड़ियां भी खींची जाएगी और रेलों का आकर्षक रूप संसार और कार्य व्यापार इतना मनमोहक होगा कि दुनिया उसे देखकर सम्मोहित हो जाएगी ।
     भारत में ही नहीं , पूरी दुनिया में रेलों का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। रेलें, विकास की समाजिक  पहचान के साथ जुड़ी हुई है । रेलों की गति समाज की गति को निर्धारित कर रही है। रेलें देश की धड़कन हैं । भागमभाग से भरी जिंदगी में रेलें हमारा समय संतुलित करती हैं । रेलों ने हमारे जीवन को मायने दिए हैं। रेल हैं , इसलिए कोई भी दूरी आज दूरी नहीं रह गई है । उन्होंने विस्तार को समेट दिया है । रेलों ने समाजों को मिलाया है और लोग तन और मन दोनों से पास - पास आए।आज यह कहना मुश्किल हो गया है कि आदमी रेलों को चला रहा है या रेलें आदमी को चला रही है । कुछ देर के लिए भी रेलों का परिचालन रुक जाता है तो लगता है कि पूरे समाज की सांस रुकी जा रही है , सारे काम रुक जाते हैं । भूचाल -सा आ जाता है । ऐसे में रेल प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो जाती है तो लगता है जैसे जीवन की वापसी हो गई । मौजूदा दौर में जब कि पूंजी और तकनीक पूरी दुनिया पर हावी हो रही है और लोग भावनाओं से दूर हटते जा रहे हैं ,कम -से -कम रेलें भारत में लोगों का भरोसा बनी हुई है । 
      आज रेल के साथ पूरा समाज गहरा रिश्ता महसूस करता है।
       भारतीय रेलें सिर्फ आवागमन का ही साधन नहीं है । रेलों को आम और खास लोग बहुत अपनेपन के साथ देखते हैं और सफर के समय जब उसमें बैठते हैं तब गर्व और खुशी दोनों महसूस करते हैं । देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके जीवन का हिस्सा रेलें हैं। ये करोड़ों लोग पूरे भरोसे के साथ रेल से सफर करते हैं । इन करोड़ों लोगों के सपने में रेलें होती हैं । भागती हुई रेलों की आवाज इन्हें  कर्णप्रिय संगीत लगता है । रेलों की गोद में इन्हें  नींद आ जाती है । रेलें इन्हें हर पल नए अनुभव से जोड़ती है । ये  रेल के सफर से कभी नहीं ऊबते बल्कि हर रोज ये करोड़ों लोग अपनी प्रिय रेलगाड़ियों में ऐसे बैठते हैं जैसे अपने किसी प्रिय मित्र से पहली बार मिलने जा रहे हैं । 
     भारत में रेल की दुनिया अजीबोगरीब है। रेलगाड़ी में जब आप बैठते हैं तब आप एक अपरिचित दुनिया के साथ होते हैं । नई - नई जिज्ञासाओं के साथ । ये अपरिचय बड़ा रोमांचक होता है । यह रोमांच एक जिज्ञासु की तरह हमें बहुत कुछ खोजने के लिए प्रेरित करता है । रेल में नए रिश्ते बन जाते हैं। रेल में हम मुसाफिर होते हैं -एक ही मंजिल की ओर जाते हुए हम और भी प्रेमपूर्ण हो जाते हैं। रेल में हम सहयोगी होते हैं, सहयात्री होते हैं , मित्र होते हैं । रेलें हमें सामूहिकता में रहना और जीना सिखाती है । लंबी यात्रा में हमारा घर हो जाती है । 
       उस समय को याद कीजिए जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 8 बोगियों की रेल को लाइन पर उतारा गया था । इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग एकत्र हुए थे।
        जहां - जहां से यह गाड़ी गयी थी,  उसके पूरे रास्ते पर पड़नेवाले गांव के लोगों ने गाड़ी को पहली बार भागते हुए देखा था । उस दिन किसी ने सोचा तक न था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब यात्रियों को लेकर यह गाड़ी आएगी -जाएगी । बताया जाता है कि आज भारतीय रेल लाइनों को अगर जोड़ दिया जाए तो वह चंद्रमा तक जाकर वापस लौट सकती है । भारत में रेलों के विकास की यही सच्चाई है ।
        आज स्टीम इंजन भारतीय रेलवे में बहुत कम है । गिनती के स्टीम इंजन ही बचे हैं जो विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। लेकिन आज भी जब रेलगाड़ी की बात चलती है तब रेल का वही काला-कलूटा खूबसूरत विशालकाय शक्तिशाली स्टीम इंजन याद आता है, किसी और रेल इंजन की तस्वीर उभरती ही नहीं । आपको आश्चर्य होगा यह जानकर कि भारतीय रेल मंत्रालय ने कुछ आर्थिक कारणों और कोयले की कमी के कारण जब स्टीम इंजनों को सेवानिवृत्त किया तब इन इंजनों के ड्राइवर फूट-फूटकर रोए । स्टीम इंजन के रिटायर किए जाने से उन्हें बहुत तकलीफ हुई क्योंकि ये ड्राइवर्स अपने रेल स्टीम इंजन को बहुत प्यार करते थे। स्टीम इंजन के रिटायरमेंट की बात सुनकर उन्हें लगा जैसे उनकी  सांस रुक गई । लेकिन  यह  सरकार का फैसला था  इसलिए  टाला नहीं जा सका  । उस दिन यह बात साबित हो गयी कि रेलें सेवक नहीं है । ये आदमी की रिश्तेदार है । कोई रिश्ता बन गया होगा तभी तो इन रेल संचालकों की आंखों में आंसू आ गए थे । 
       बीबीसी ने भारत में स्टीम इंजन के रिटायरमेंट पर बहुत प्यारी सी फिल्म बनाई थी । उस फिल्म में मनुष्य और मशीन के रिश्ते को बहुत ही रचनात्मक तरीके से रेखांकित किया गया था । यह सच है कि मशीनों ने आज के दौर में जिस प्रकार हमारी जिंदगी में हस्तक्षेप किया है , उससे हमारी सोच भी विकसित हुई है । हमें काम करने के और ज्यादा अवसर मिले हैं और हमारा काम पहले से बेहतर हुआ है । रेलें भी मशीन ही है।यह न सिर्फ आज  पहली पंक्ति में है बल्कि मनुष्य की दोस्ती भी है । भारत में बहुत तरह के वाहन इस्तेमाल में लाए जाते हैं और इनमें से अधिकतर मशीनों से चलते हैं लेकिन रेल को किसी दूसरे वाहन से ज्यादा लोकप्रियता मिली है और यह ज्यादा उपयोगी भी साबित हुई है ।
        भारतीय रेल में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देखने को मिलता है। कोई भी रेलगाड़ी के डिब्बे में बैठता है तो कोई सुविधा किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही हो, ऐसा नहीं है , जैसा कि अंग्रेजों के जमाने में था । कुछ सुविधाएं थी उस  ज़माने में। जिनका भारतीय रेलयात्री इस्तेमाल नहीं कर सकते थे । आज भारतीय रेल के लोकतांत्रिक संविधान में सभी यात्रियों को समान अधिकार दे दिए गए हैं।            दोस्तों , समाज अगर आईना है तो साहित्य में रेल की रोमांचक दुनिया को भी इसमे साफ-साफ देखा जा सकता है। रेलअपने ही भंवर में घूमते हुए साहित्य में जैसे एक सार्थक हस्तक्षेप है । रेल की दुनिया की विशालता , अनुशासन और उद्देश्य इसके एक गौरवशाली क्षेत्र और आवश्यकता का परिचय देते हैं । रेल की दुनिया कभी छोटी नहीं दिखाई देती। रेल की दुनिया बाकी दुनिया से अलग-थलग है इसीलिए यह अपनी ओर खींचती है। जब रेलों की ओर हम कदम बढ़ा रहे होते हैं तब एक अलग ही खुशी से रोमांचित होते हैं । 
        रेल ने साहित्य में कब की जगह बनाई और कब साहित्य ने रेलों का स्वागत किया ,  यह कह पाना बड़ा मुश्किल है लेकिन यह सच है कि रेल और साहित्य ने उस आजादी का अवश्य स्वागत किया जो विस्तार और सृजन के लिए आवश्यक होती है। तीसरी ,चौथी और पांचवी कक्षा के किताबों में लगभग सभी लोगों ने हिमालय , किसान ,चिड़िया , तिरंगा झंडा , चंदा मामा और कृष्ण सुदामा आदि न जाने कितने विषयों पर कविताएं पढ़ी लेकिन मैंने आज तक इन्हीं कक्षाओं की कोई ऐसी किताब नहीं देखी जिसमें रेलगाड़ी के व्यापक संसार पर आधारित कोई कविता न हो। स्टीम इंजन की ताकत का विनम्र स्मरण करते हुए उस दौर के कवियों ने बच्चोंऔर किशोरों के लिए रेलगाड़ी को केंद्र में रखकर बहुत सुंदर कविताएं लिखी- छुक छुक छुक छुक छुक छुक छुक छुक चलती रेल -जैसी पंक्तियों के सहारे हमें रेलगाड़ी की गति का आभास कराया गया , वही कवि ने रेल के डिब्बों के सहारे एकता का संदेश भी दिया । यह बताने की कोशिश की कि रेलगाड़ी खेतों , गांव , कस्बा , वनों और पहाड़ों से होती हुई सभी को उनके गंतव्य तक ले जाती है और यही रेल का धर्म है । हर स्तर पर बच्चों और किशोरों के लिए रेल को ध्यान में रखकर जो कविताएं लिखी गई , उन्होंने छोटों के साथ बड़ों को भी प्रभावित किया । इन कविताओं में लय, संगीत और गति इतनी थी कि ये कविताएं लोगों की जुबान पर न सिर्फ चढ़ी बल्कि जिंदगी भर इन कविताओं का मीठा - मीठा स्वाद बना ही रहा। दरअसल साहित्य में रेल का रोमांच कभी द्वितीय श्रेणी का नहीं रहा। कविताएं हो या कहानियां यदि उनमें रेल ने हस्तक्षेप किया तो पूरा कथ्य रोचक , अर्थपूर्ण और रोमांचक हो गया। यह जरूर हुआ है कि साहित्य में बच्चों के लिए लिखते समय जहां रेल के संपूर्ण व्यक्तित्व को उसके कर्म और कार्यक्षेत्र को विषय बना कर आदर्शों की स्थापना की कोशिश की गई , वहीं साहित्य में रेल हमारे जीवन संघर्ष को रेखांकित करते प्रतीकों के रूप में सामने आई। साहित्य में रेल का रोमांच सृजनात्मक , स्फूर्तिदायक प्रतिक्रिया भर नहीं है , उसकी तेज गति और निरंतरता में हमें जीवन का संगीत मिलता है , रेल, साहित्य किसी भी रचनाकार की चेतना पर अविराम दस्तक देती बेचैनी है , यही बेचैनी जब एक बड़े फलक पर विभिन्न संदर्भों के साथ साहित्य में आती है  , तब मानवीय अस्मिता की धरोहर बन जाती है , रेल का रोमांच मनुष्य की आशा और जिजीविषा के साथ सृजन की ललक पैदा करता है और सकारात्मक सोच को जन्म देता है। साहित्य में रेल का रोमांच वह साहित्यकार ज्यादा ख़ूबसूरती से पैदा कर सके हैं , जिनके साहित्य का आधार साहित्यकार की यायावरी जिंदगी रही है , साहित्यकारों का मानना है कि रेल ने उन्हें दुनिया देखने का अवसर दिया है। रेलें न होती तो रेलयात्रा पर आधारित रोमांचक संस्मरण भी न होते । रेल ने समाज के बीच के अजनबीपन को दूर करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रेल ने सृजनात्मकता के लिए नई जमीन तैयार की है । सैकड़ों साहित्यकारों को अपनी नई से नई रचनाओं के लिए कथ्य और चरित्र बहुत बार रेल के रोमांच से ही मिले ।गुरु रविंद्रनाथ ठाकुर ने विश्व की सबसे छोटी कहानी जब लिखी तब आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उस कहानी की घटना न सिर्फ रेल में घटित हुई बल्कि उसमें रोमांच भी पैदा किया। विश्व की सबसे छोटी कहानी क्या थी, इसे आप भी सुने।
 'निस्तब्ध अंधेरी रात में रेलवे सफर कर रहे एक यात्री ने दूसरे यात्री से पूछा कि क्या तुमने भूत देखा है , और वह गायब हो गया।'
 रविंद्रबाबू चाहते तो कथा का घटनास्थल कोई पुराना महल , पुराना मकान या हवेली बना सकते थे लेकिन ऐसा करने पर उस कहानी में हो सकता है , सब कुछ होता है लेकिन रेल का रोमांच उसमें नहीं होता । सच तो यह है कि रेल साहित्य में बहुत कुछ कहती है और हमारी अभिव्यक्ति को धारदार बनाती है। रेल बहुत खूबसूरती पैदा करती है  । साहित्य में जहां-जहां रेल का रोमांच आया है ,साहित्य रोचक हो गया है । रेल का रोमांच साहित्यकारों के लिए ही नहीं , सबके लिए नया है । यही वजह है कि कविता में रेल के प्रतीक के जरिए जीवन के सच को कहने में जहां अपार सफलता मिली है , वही कहानीकारों ने रेल के रोमांच की अनुभूति करते हुए ऐसे -ऐसे चरित्र खोज निकाले हैं , जिनके बारे में जानकर आश्चर्य होता है। सुप्रसिद्ध कथाकार अमरकांत की कहानी 'मित्र -मिलन ' रेल के रोमांच का सर्वोत्तम उदाहरण है। दो दोस्तों का रेल में अचानक मिल जाना पाठकों को अनुभूति के स्तर पर स्पर्श कर लेता है। बांग्ला साहित्य के प्रथम पंक्ति के उपन्यासकार विमल मित्र ने रेलवे की नौकरी की थी । नौकरी के दौरान रेल यात्रा में विमल राय सैकड़ों ऐसे लोगों से मिले जिनका जीवन साहित्यकार के चिंतन मनन के बाद विमल मित्र के उपन्यासों में महत्वपूर्ण चरित्र बनकर सामने आया । साहित्य में रेल का रोमांच छोटे -- बड़े सभी साहित्यकारों को आकर्षित करता रहा और साहित्यकारों ने बड़ी शिद्दत से इस रोमांच को पाठकों तक पहुंचाया ।दोस्तों ,साहित्य जब तक लिखा जाता रहेगा , रेल साहित्यकारों को रोमांचित करती रहेगी । अगली बार जब आप रेल सफर पर जाएं, यह जरूर 
सोचिएगा कि रेल भी क्या आपसे कुछ कहती हैं , क्या यह आपको भी रोमांचित करती हैं और रेल के रोमांच में ऐसा क्या है , जो मशीनों की अजनबी दुनिया में हमें अपना लगता है। 
**अजामिल
**आकाशवाणी इलाहाबाद से प्रसारित।

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