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Tuesday, July 17, 2018

हां मैंने फिराक को देखा है

अल फिराके अल फिराके अल फिराके अल फ़िराक
इस तरह इस ज़िन्दगी का एक वरक़ उल्टा गया । - मीना कुमारी
सन् 1972 बैंक रोड इलाहाबाद । सर्दियों की एक दोपहर । कथाकार अनीता गोपेश , शशि शर्मा  और मैं यानि अजामिल रोज़ की तरह एशिया के सबसे बड़े शायर रघुपति सहाय फ़िराक जी के सानिध्य का सुख उठा रहे थे । फ़िराक साहब तबियत से साहित्य के अनेक मुद्दों पर बतिया रहे थे । अनीता और शशि जी नोट्स ले रहे थे । मैं अपने 35 mm फार्मेट के जेनिथ कैमरे से फ़िराक साहब के चेहरे पर आ जा रही भाव भंगिमाओं को कैद रहा था । उस दिन 80 से ज़्यादा तस्वीरें उतारी थी मैंने फ़िराक साहब की । उन तस्वीरों में से काफी तस्वीरें धर्मयुग सारिका दिनमान जनसत्ता नव भारत टाइम्स और इंडिया टुडे  आदि तमाम पत्रपत्रिकाओं  में प्रकाशित हुई थी ।
       वक़्त गुज़र गया । पर यादें आज भी ताज़ा है । फ़िराक साहब कहाकार्टे थे क़ि लोग नाज़ करेंगे क़ि उन्होंने फ़िराक को देखा है । मैं और मेरी दोनों सहेलियां हम भाग्य शाली हैं कि हमने फ़िराक साहब को देखा ही नहीं है बल्कि उनकी प्यार दुलार से भरी गालियां भी खायीं हैं ।
-अजामिल
छाया : अजामिल

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