कविता/अजामिल
|| ईर्ष्या ||
जब मन और आत्मा
शामिल होते हैं किसी उत्सव में
वह पिशाचिनी चुपके से
हमारी आकांक्षाओं के घने
पेड़ से उतरकर
सवार हो जाती हैं
हमारे कपाल पर
रक्त में बहने लगती है-
ठठाकर हंसती –
उपहास करती हुई चुडैल की तरह ...
पत्ते की तरह काँपता है शरीर
सभी उड़ाने रद्द हो जाती हैं –अचानक.
बड़ी कुत्ती चीज़ हैं कम्बख्त
न घर की न घाट की
हज़ार इच्छाएं ठाट की
सुलगती है पर्त दर पर्त
जैसे जलती है राख के नीचे आग
आँख मिचमिचाते हुए ...
राजनीति की आपा है
मंथरा की चाची
जरा-सा मौका मिला कि
पग घुँघरू बांध मीरा नाची
रानी-महारानी
सब उसके ठेगें पर.
सत्य की मुखाल्फत में
नपुंसक आन्दोलन हैं नामुराद
गुप्त रोग से भी घातक है ससुरी
अवैध सम्बन्धों का बीजमन्त्र
एड्स से भी ज्यादा खतरनाक.
इसकी मोहब्बत में जो फंसा
बस समझो गया काम से |
कवि अजामिल की अन्य कविताओं के लिए देखें
http://samkaalinmuktibodh.blogspot.com/
Painting by –Ajamil


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