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Monday, February 27, 2017

साहित्य चिंतक प्रोफैसर अमर सिंह नहीं रहे

बार बार एक सवाल मन में आता है कि आखिर अमर सिंह जी को दुनिया जहान छोड़ कर जाने की इतनी जल्दी भी क्या थी अभी पिछले दिनों गोपीकृष्ण गोपेश की अनुदित किताब विदेशों के महाकाव्य पर उन्होंने विशेष वक्तव्य दिया था उस दिन उनकी जाने की जल्दबाजी का कोई संकेत हमें नहीं मिला बल्कि वह बेहद शांत दिख रहे थे उस दिन उन्होंने सबसे मुलाकात की सबका हाल चाल लिया मैंने हमेशा की तरह उनके चरण स्पर्श किए तो उन्होंने आशीर्वाद दिया प्रोफेसर अमर सिंह उन लोगों में थे जो किसी भी कार्यक्रम में पहुंचे तो उस कार्यक्रम की गरिमा दोगुनी हो गई उनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वह सभी विषयों में और सभी लोगों में रुचि रखते थे अच्छे लोगों को पहचानने में उन्हें महारत हासिल थी उन्हें लल्लो-चप्पो करते कभी किसी ने नहीं देखा बेहद शांत रहते थे और आवश्यकता होने पर ही बोलते थे उनके पास विभिन्न विषयों पर तमाम ऐसी जानकारी होती थी जो अक्सर हमारी पहले सुनी हुई नहीं होती थी उनके चेहरे पर बिल्कुल बच्चों जैसी बहुत प्यारी सी मुस्कुराहट खेलती रहती थी आज भी हमें नहीं लगता कि प्रोफेसर अमर सिंह हमें छोड़ कर जा चुके हैं उनका इस दुनिया से जाना नामुमकिन है वह हमारी यादों में हमेशा बसे रहेंगे पिछली मुलाकात में मैंने उनकी कुछ तस्वीरें क्लिक की थी बहुत संकोच के साथ उन्होंने मुझे सहयोग किया अब नहीं है तो हमें उनकी यादों को सहेज कर रखना है क्योंकि उनके जैसे लोग आज की दुनिया में बहुत कम हो गए हैं उन की पीढ़ी लगभग हमें छोड़ कर जा चुकी है प्रोफेसर अमर सिंह रायबरेली के रहने वाले थे पर उनका मन पक्का इलाहाबादी था समकालीन मुक्तिबोध के साथ मिलकर मैं उन्हें अपना अंतिम प्रणाम पूरी श्रद्धा के साथ अर्पित करता हूं सादर

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