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Friday, May 14, 2021

मूर्धन्य कथाकार कृष्णा सोबती की धमकी और प्यार

अविस्मरणीय 
मूर्धन्य कथा लेखिका
कृष्णा सोबती की धमकी और प्यार

बात उस समय की है , जब मैं हिंदी की सुप्रसिद्ध पत्रिका वर्तमान साहित्य में संयुक्त संपादक था, मेरे साथ पत्रकार ओमप्रकाश गर्ग भी थे। हमारी पत्रिका के संपादक सुप्रसिद्ध कथालेखक से. रा . यात्री और उपन्यासकार विभूति नारायण राय थे । हमारी पत्रिका वर्तमान साहित्य पूरे आन बान और शान के साथ हर महीने निकल रही थी और चर्चा में थी । हमें इस बात का गर्व है कि उस समय वर्तमान साहित्य को देश के सभी वरिष्ठ - कनिष्ठ लेखको का रचनात्मक सहयोग प्राप्त हो रहा था यह  बात  उन्हीं दिनों की है। उस समय हम वर्तमान साहित्य के हर  अंक में एक विशेष प्रयोग कर रहे थे, जिसे हमारे पाठक और साहित्यकार भी बहुत पसंद कर रहे थे । उन्हीं दिनों इलाहाबाद से वर्तमान साहित्य के संपादक विभूति नारायण राय का फोन हमारे पत्रिका के संयुक्त संपादक ओमप्रकाश गर्ग को मिला, जिसमें उन्होंने हमें आदेश दिया कि हम फौरन जाकर कृष्णा सोबती से मिलें। वह हमसे बहुत नाराज हैं और पत्रिका पर मुकदमा चलाने की बात कह रही हैं। हम जाएं और उन्हें समझाएं । 
मैं और मेरे सहयोगी ओम प्रकाश गर्ग दोनों भागे - भागे गाजियाबाद से दिल्ली पहुंचे और 10:30 बजे के आसपास हमने कृष्णा सोबती के फ्लैट  के  दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खुला, दरवाजे पर कृष्णा जी खड़ी थीं। हमने अपना परिचय दिया तो उन्होंने कहा आइए । हम अंदर गए। जिस कमरे की हमें बैठाया गया, वह कमरा कृष्णा जी ने पूरी सुरुचि से सजाया था। उनके कमरे में जो कुछ भी रखा हुआ था , वह अपनी तरह का नायाब टुकड़ा था जिसमें अपने देश की मिट्टी की सोंधी - सोंधी सुगंध घुली हुई थी। हम पास पड़े सोफे पर बैठने लगे तो कृष्ण जी ने हमें अपने पास बैठने के लिए कहा। कृष्णा जी कमरे में एक दीवार से सटे मोटे गद्दे पर बैठी हुई थी । वहां उनकी किताबें और लिखने पढ़ने की सभी सामग्री रखी हुई थी ।हम बड़े सकुचाए से उस बिस्तर पर बैठ गए। कृष्णा जी ने क्रीम कलर का बहुत सुंदर सूट पहन रखा था - ढीला ढाला और उनके भीतर जिस ऊर्जा को हम देख रहे थे , वह किसी 30 साल की युवती के भीतर ही दिखाई दे सकती थी, जबकि कृष्णा जी 60 पार कर चुकी थी । 
हमारे बैठने के बाद उन्होंने अंदर किचन से पानी ला कर हमें दिया । ये सारी बातें बहुत सामान्य तरीके से घटित हो रही थी इसलिए हमारा डर धीरे - धीरे कम हो रहा था । उसके बाद शांतिपूर्वक कृष्णा जी  ने  कहा कि मैं आप लोगों से बहुत नाराज हूं । यह आपने वर्तमान साहित्य ने क्या छाप दिया है । पूरे देश में मेरी  थू -थू हो रही है । सुबह से कितने फोन आ चुके हैं मेरे पास। सबका कहना है कि आपने मेरा मजाक बनाया है।
 हम अभी तक उनकी नाराजगी का कारण नहीं जान पाए थे। हमने विनम्रता से पूछा दीदी हमें बताइए हमारी गलती क्या है । उन्होंने कहा सारा कुछ गलत है ।आपको इस तरह की हरकत करने से पहले मुझे बताना चाहिए था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर वर्तमान साहित्य का वह अंक हमारे सामने रख दिया जिसके कवर पर उनकी फोटो छपी थी । उन्होंने आगे कहा यह क्या छापा है आपने ? आपको इसके अलावा मेरी कोई तस्वीर नहीं मिली । यह बहुत गंदी तस्वीर है । मेरे सर में दर्द हो रहा था इसलिए मैंने सर पर दुपट्टा लपेट रखा था । आपने यह भी नहीं देखा कि मैं इस फोटो में कैसी लग रही हूं । 
अब पूरी बात हमारी समझ में आई लेकिन कृष्ण जी से बहस करना संभव नहीं था ,  इसलिए हमने केवल इतना कहा दीदी यह तस्वीर हमें एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर से मिली थी। हमें अच्छी लगी इसलिए हमने उसको प्रकाशित कर दिया । उन्होंने कहा कि आपने गलत किया । यह तस्वीर छापने योग्य नहीं है । हमने कहा आप हमें इस गलती के लिए क्षमा करें । आगे हम इस बात का ध्यान रखेंगे ।बस इतना सुनना था कि वह भड़क गयीं बोली नहीं नहीं आप दोनों को मैं क्षमा नहीं कर सकती । आप को सजा मिलेगी । आपके ऊपर में मुकदमा कायम करूंगी और आप को अदालत में घसीटूंगी आप दोनों ने माफी के लायक काम नहीं किया है । 
हम बहुत देर तक कृष्ण जी से क्षमा याचना करते रहे लेकिन कृष्ण जी बिल्कुल नहीं मानी । उन्होंने हमें धमकी दी कि वह हमें नहीं छोड़ेंगी। आखिरकार हमने एक बार और अपना माफीनामा उनके सामने पेश किया, जिसे उन्होंने इंकार कर दिया । 
थोड़ी देर के बाद हम उठ खड़े हुए और हमने कहा दीदी अब हम चलना चाहेंगे। इस बात पर कृष्ण जी फिर बिगड़ गई ,अरे कैसे जाओगे ,बैठो  अभी तुम लोगों को और डांट है मुझे। तुम्हें।हम समझ गए कि हम बुरे फंस गए हैं ।
 इसके बाद कृष्णा जी अपने किचन में गई । लौट के आई तो उनके हाथ में एक बड़ी प्लेट में पंजाबी स्टाइल से बनाए गए मक्खन से भरपूर आलू के पराठे थे । उन्होंने मुझे और ओम प्रकाश जी को आलू के पराठे की प्लेट दी और बोली ,आलू के पराठे के साथ आम का अचार बहुत अच्छा लगता है। लो आम का अचार खाओ और पेट भर कर खाना । सुबह के निकले हो, भूख तो लगी ही होगी । हम सोच रहे थे कि क्या यह वही कृष्णा जी है जो अभी तक हमें इतनी बुरी तरह से डांट रही थी , मुकदमा चलाने की बात कर रही थी । पराठा खाने के बाद जब हम उनके फ्लैट से बाहर निकलने लगे तब हमने उनका चरण स्पर्श किया। उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया और कहा कि तुमने वर्तमान साहित्य में जो तस्वीर छापी है, वह बहुत बुरी भी नहीं है , कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है। कोई बात नहीं, तुम लोगों को पसंद आई इसलिए मुझे भी पसंद है। बहुत-बहुत शुक्रिया । हमने पूछा दीदी अब मुकदमा तो नहीं चलाएंगी ना ।दीदी ने कहा ,अरे जाओ ,मेरे पास इतनी फुर्सत नहीं है कि मैं ऐसी छोटी-छोटी बातों पर सबसे झगड़ा करती रहूं। मेरा मन तुम्हें डांटते का था। मैंने तुम्हें डांट दिया, मेरा मन हल्का हो गया । और हां , यह तुम्हारा आना आखिरी बार नहीं है ।मेरे घर आते रहना ।
इस घटना को बहुत दिन हो गए हैं लेकिन हमें आज तक याद है। कृष्णा जी की डांट खाना भी हमारा सौभाग्य था।
**अजामिल

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