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Monday, May 3, 2021

बाल कहानी/ एक थी गिल्लू मौसी/ अजामिल

बाल कहानी 

एक थी गिल्लू मौसी

**अजामिल


गिल्लू ! गिल्लू माने गिलहरी ! और एक थी गिल्लू मौसी, बहुत कंजूस मक्खीचूस, एक दिन क्या हुआ सुबह-सुबह का समय था, 

गिल्लू मौसी अपने कोठरे के बाहर बैठी टुकुर-टुकुर अपनी नन्हीं आंखों से इधर -उधर ताक रही थी, तभी खट - पटर सुनकर चौंक पड़ी। अपनी रोयेंदार पूँछ को शान से खड़ा करके पेड़ के नीचे देखने लगी । कौन हो सकता है ?—सोच रही थी कि जड़ के पास बिल में रहनेवाला चूहा दिखाई पड़ गया। वह धोरे-धीरे पेड़ के ऊपर आ रहा था । गिल्लू मोसी को अपनी ओर देखता पाकर बोला—“नमस्ते गिल्लू मौसी।"


गिल्लू मौसी की आंखों में चमक आ गई। वह घुटने मोड़कर बैठ गई। धूप का एक टुकड़ा उसके ऊपर पड़ रहा था । बोली-“नमस्ते बेटा, नमस्ते, आज सबेरे सबेरे ही ऊपर आ गया रे ।"


चूहे ने बगल में पड़े धूप के टुकड़े पर बैठते हुये कहा-"हां मौसी, ठंड के मारे नीचे नहीं बैठा जाता । दांत किटकिटाये जाते हैं, सोचा, चलकर धूप ही खा आऊँ।"


गिल्लू मौसी ने सशंकित होकर उसकी ओर देखा-'हां-हां, ऐसा भी क्या, धूप चाहे जितनी खा ले लेकिन फलों को हाथ मत लगाना।"


-"अरे मौसी तुम मुझे चोर समझती हो क्या ?" चूहे ने कहा ।


गिल्लू मौसी बोली-"ना, बेटा ना, चोर क्यों समझूगी । वो ऐसा है ना कि इस पेड़ के फल सब मेरे हैं । तुम तो जानते ही हो कि ये पेड़ मेरा है । पूरे एक बरस से रह रही हूँ यहां । ऐ इत्तो सी थी, जब यहां आई थी और फिर तुम तो मेरे किरायेदार हो ।”


"ठीक है मौसी, न छुऊंगा फल ! बस ? तुम बिल्कुल फिकर न करो'-चूहे ने जान छुड़ानी चाही। 

"अरे हां ! तुझ पर तो मुझे भरोसा है । मगर वह तोताराम है ना, अरे वही लाल चोंचवाला, पक्का चोर है। सुबह से उठकर टें-टें करने लगता है । न खुद सोता है , ना सोने देता है । मैं कहूँ जाड़े के दिन हैं भई, तू भी जरा ज्यादा सो ले, मगर वह तो ऐसा निकम्मा है कि पूछ मत । कहता है मुझसे–'राम राम कहता हूँ मौसी ।' अरे वाह रे तेरे राम, मैं तो बाज आई ऐसे किरायेदार से।"

चूहा बोला - अच्छा कहाँ गया है तोताराम ?

' गिल्लू मौसी ने रोयेदार पूंछ से नाक रगड़ते हुये कहा-"अरे गया होगा किसी बाग में, चटोरा है, संगी - साथी आ जाते हैं सुबह से तो चल देता है-टें-टें करता । कहता था-अमरूद खूब फले हैं अब की, मैं तो कोठरा छोड़कर चला जाऊंगा ; मैंने कहा जा भैय्या तू, मेरा पीछा छोड़ ! क्यों जी ?" 

चूहे ने फलों की ओर देखते हुए कहा "ठीक ही है मौसी।" 

गिल्लू मौसी ने फलों को ओर उसे देखते देखा तो बोली-“ऐ, फलों को ऐसे क्यों घूर रहा है ! नजर लगायेगा क्या ?"

"अरे नहीं मौसी, अपनों की नज़र नहीं लगती है। मैं तो देखकर खुश हो रहा हूँ। इस बार सब डालियाँ लदी हैं फलों से।"


धूप का टुकड़ा सरक गया था। गिल्लू मौसी घूमकर बैठ गई थी। अभी बातें हो रही थीं कि तोताराम आ पहुँचा और बगल की डाल पर बैठ गया। गिल्लू मौसी की ओर देख कर बोला-"मैंने कहा नमस्ते, मौसी।"


"नमस्ते ! नमस्ते ! अरे ऐ तोताराम, चल इधर आकर बैठ । तू बड़ा लालची है, अभी कहीं मेरे फल नोच लिये तो?"


तोताराम खिसिया गया-" बहुत मत बोला करो गिल्लू मौसी, थोड़े से फल क्या आ गये पेड़ में, अपने को जाने क्या समझने लगी हो।"


"चुप बदमाश कहीं का, मुझसे जबान लड़ाता है। देख रहा है चूहे ! जान ले तोताराम, निकाल बाहर करूंगी तुझे।"


"हां-हां, निकाल कर बाहर करूंगी तुझे । पेड़ कोई आपका थोड़ी है।"


"अच्छा जी, तो पेड़ पर भी हक जता रहा है । जानता है , बचपन से रह रही हूं यहाँ और तुझे आये तो साल भर भी नहीं हुआ, खबरदार जो इस सब चक्कर में रहा।"


तोताराम बोला-"रहूँगा सौ बार रहूँगा  और फिर मान भी लूं कि पेड़ आपका है, तो क्या फल भी आपके हो जायेंगे । फलों पर हम किरायेदारों का भी अधिकार है।"


चूहे को बड़ा मजा आ रहा था। अक्सर गिल्लू मौसी और तोतेराम के बीच  यूं ही तू-तू मैं-मैं होती थी। बड़ा मज़ा आता था । चूहेराम ने मुस्कुरा कर कहा-"ठीक तो कह रहा है तोताराम, गिल्लू मौसी।" 

बस गिल्लू मौसी का गुस्सा नाक पर आ गया। चूहे का बोलना जले पर नमक का काम कर गया। गिल्लू मौसी अपनी रोंयेदार पूंछ को जमीन पर पटकती हुई बोली-“अच्छा तो तू भी इससे मिल गया। ठहर दोनों को निकाल बाहर करूंगी।" और गुस्से से नाक फुलाती गिल्लू मौसी कोठरे में घुस गई। चूहा और तोताराम दोनों मिलकर उसे चिढ़ाने लगे।


गिल्लू मौसी कोठरे में आकर सोचने लगी-बड़ी मुसीबत है। चूहा और तोताराम दोनों ही मेरे पीछे पड़े हैं। चटोरे कहीं के । जब देखो तब चिढ़ाया करते हैं। मैं कोई इनके बराबर हूँ। दोनों से दूनी हूँ उम्र में । कम -से -कम बड़ों की इज्जत तो करनी चाहिये । मगर ये दोनों तो मुझसे बहस करते हैं। मुझपर उल्टे रोब गाँठते हैं । फिर मैं क्यों हूँ इनको अपने फल ? रहने को कह दिया, यही बहुत है। और ये तोताराम तो किराया भी नहीं देता । आज तक एक भी नया तो फल लाकर नहीं खिलाया । मगर इन्हें निकालू कैसे ? अड़ोस-पड़ोस के पेड़ों पर रहने वाली गिलहरियों और चिड़ियों से भी तो मेरी लड़ाई है । सब कहते हैं मिलकर रहो , मगर मैं ध्यान कहाँ देती हूँ इस पर ? एक काम हो सकता है अगर उन्हें कुछ सड़े फल खाने को दे दूँ तो वे दोनों खुश हो जायेंगे और चिढ़ाना बन्द कर देंगे । हाँ-हाँ, यही ठीक रहेगा। 


गिल्लू मौसी सोचने के बाद अधिक नहीं रुक सकी। । फौरन कोठरे से निकल कर बाहर आई। देखा, तो पेड़ को डालों पर धूप सोने - सी मढ़ गई थी। पड़ोस के पेड़ पर चिड़ियाँ गा-गा कर अपना पाठ याद कर रही थीं।

उन्होंने रोंयेदार पूंछ को ऊपर उठाकर एक मोटी डाल से चिपक कर नीचे झाँका । चूहा जमीन पर बैठा था और तोताराम अपने कोठरे में  बैठा बासी अमरूद खा रहा था। गिल्लू मौसी ने आवाज़ दी -“ओऽऽ चूहेऽऽऽऽ ।"


नीचे से आवाज़ आई-"आया गिल्लू मौसी।" 

"अरे ओ तोताराम !"

"आया मौसी ,आया।" तोताराम ने उत्तर दिया।

थोड़ी देर के बाद दोनों ऊपर आ गए । गिल्लू मौसी ने अपनी रोंयेदार पूंछ से दोनों को दुलराते हुए कहा-“ऐ तोताराम, जानता है क्यों बुलाया है तुम दोनों को मैंने ! अरे फल देने के लिये। आखिर मोह लगता है कि नहीं मुझे तुम दोनों का । गुस्सा होती हूँ तो प्यार भी खूब करती हूँ और तू निखट्टू मुझसे बहस क्यों करता है रे ? देखता नहीं , तुझसे कितनी बड़ी हूँ।"


तोताराम बोला- "मुझे माफ कर दो मौसी ।"


"चल माफ कर दिया" गिल्लू मौसी ने खुश होकर कहा-“अब एक काम करो तुम दोनों जाकर पेड़ के नीचे खड़े हो, मैं फल गिराती हूँ  तुम दोनों के लिए।


दोनों लपककर नीचे जा पहुँचे । गिल्लू मौसी अपनी चाल पर बेहद खुश हो रही थी। सड़े-सड़े फल तोड़कर नीचे फेंकने लगी। एक....दो...तीन...चार !....पाँच.... 

तोताराम नीचे से बोला-“मौसी, आप तो सड़े-सड़े फल गिरा रही हैं । ये देखिए इनमें कोड़े हैं।" 

"हाँ मौसी ! फल सड़े हैं।" चूहे ने समर्थन किया ।


गिल्लू मौसी ने कहा-"अजी रहने दो सड़े । तुम साफ करके खा लो । बाकी खराब हिस्से फेंक दो।" दोनों चुन-चुन कर खाते रहे और गिल्लू मौसी सड़े फलों को गिराती रही । 'ना' भी नहीं कर सकते थे बेचारे वरना उन्हें इनसे भी हाथ धोना पड़ता।


दिन बीतते गए। गिल्लू मौसी रोज़ चूहे और तोताराम को पेड़ से सड़े फलों को तोड़कर देती रही और मारे लोभ के अच्छे फल खुद भी न खाती। कभी - कभार एकाध फल तोड़ लाई तो दो - तीन कुतरा करती। लेकिन नीचे चूहे और तोताराम के मजे थे। दोनों ठाठ से सड़े फलों के ही अच्छे भागों को चुन-चुन कर खाया करते । चूहे के यहाँ चार बेबी चूहे और पैदा होने से उसका परिवार बड़ा हो गया था लेकिन गिल्लू मौसी की कृपा से खाना - पीना चल रहा था। इस सब के बाद भी तोताराम अक्सर चूहे से कहता कि गिल्लू मौसी हमें सड़े फल जानबूझ कर खिला रही है तो वह हँसकर टाल जाता।


ऐसा ही रोज चलता रहा और गरमी आ गई ! पेड़ से सारे फल गायब हो गए । जो डालियाँ कभी फलों से लदी दिखाई पड़ती थीं , वहां अब सिर्फ दो-चार छुटपुट पत्तियों के और कुछ न रह गया। जिन डालों पर गिल्लू मौसी चौकस निगाह दौड़ाती शान से घूमा करती थी, वहाँ अब उनका जाना भी नहीं होता था। रात- दिन

कोठरे में बैठी रहती । कभी बाहर झांकती तो तेज धूप से परेशान हो कर जल्दी मुंह वापस कर लेती । दिन भर गर्म हवायें चलती रहतीं। पेड़ तपता रहता ।

सचमुच बड़ी परेशानी के दिन आ गए थे। एक दिन गिल्लू मौसी भूख से परेशान होकर कोठरे से बाहर निकली। उन्हें बड़ा अफसोस था कि उन्होंने आड़े वक्त के लिये कुछ भी बचाकर नहीं रखा था। उन्होंने नीचे झाँका,आवाज दी। कोई उत्तर नहीं आया तो फिर पुकारा-"तोताराम ! ! !' 

तोताराम ने अपने कोठरे से सर बाहर निकाला-"क्या है मौसी ?" "अरे बेटा, मैंने कहा कुछ है खाने को । भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं।"

 तोताराम ने उत्तर दिया- 'ना मौसी, मेरे पास तो कुछ भी नहीं। आजकल तो सुबह बाग में चला जाता हूँ, वहीं आम खा आता हूँ । बस दिन भर की छुट्टी ।" और उसने अपना सर फिर कोठरे में कर लिया।


गिल्लू मौसी को रोना आ रहा था । भर्राई आवाज में चूहे को पुकारा और खाने को माँगा । चूहा बोला-“मेरा परिवार तो खुद बहुत बड़ा है मौसी । और फिर मेरे पास तो उतना ही है जितना कि इस गरमी में मुझे चाहिये । आड़े वक्त के लिये हरेक को कुछ न कुछ बचाना चाहिये । लेकिन ठहरो...मैं तुम्हें कुछ न कुछ खाने को देता हूँ।"


और चूहा कुछ वही सड़े फल लेकर ऊपर आया। गिल्लू मौसी फल देखकर नाराज़ हो उठी-"ये सड़े फल तू मुझे दे रहा है ? मैं नहीं खाती ये फल ।'


“मर्जी तुम्हारी, सड़े फल तो तुमने भी मुझे खिलाये थे।- चूहा फल वहीं छोड़ कर वापस लौट गया। तोताराम ऊपर से देखकर बहुत खुश हुआ । अब पता चलेगा गिल्लू मौसी को । बहुत से सड़े फल खिलाये थे हम लोगों को।


चूहे के जाने के बाद गिल्लू मौसी देर तक बैठी सड़े फलों को देखती रही। फिर अपनी रोंयेदार पूंछ से झाड़कर खाने लगी । और सोचने लगो-"अब की पेड़ में फल आयेंगे तो सबमें बाँटकर खाऊँगी। आड़े वक्त के लिये भी बचाकर रखूंगी । अपने भविष्य की रक्षा हमें स्वयं करनी पड़ती है। 

इतनी अच्छी बातों के साथ वह सड़े फलों वाली कडुवाहट भूल गई थी।

**अजामिल

बाल कहानी संग्रह -और घण्टी यों बंधी से .

*सर्वाधिकार सुरक्षित




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