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Saturday, March 26, 2016

दर हरामी

लघुकथा / अजामिल

**दर हरामी

      भोलू पाठक ने तड़पकर कहा , “ मादर,,,,ओका तो हम बाताउब । ऊ हरामी हैं तो हम दर हरामी है …”

       दरअसल बात ऐसी बात नहीं थी लेकिन कोई तो बात थी जिसने भोलू पाठक के ऊँगली कर दी थी । अब भोलू पाठक कल्ला रहे थे । सांसद जी की माँ बहिन एक किये थे । उनकी बेइज्जती खराब हो गयी थी । वह उछल उछल कर सांसद जी की रईसी उनके अंग विशेष में घुसेड़ देने की कसम खा लिए थे । और अब बदला लेने की महती योजना पर मन ही मन काम कर रहे थे । उनकी नज़र उस कमीने को खोज रही थी जो उनका दुश्मन था और छुपकर उनपर वार कर रहा था ।

     हुआ यों था क़ि कारपोरेट घराने ने मुख्य कार्यालय के चपरासी से लेकर  बड़े मैनेजर तक कर्मचारियों को बर्दी दी थी । समाजवादी पार्टी से निकाले गए सांसद जी समाजवादी पार्टी की अच्छी बुरी यादों को नहीं भूल पा रहे थे। कंपनी में समाजवादी विचारधारा के कल्चर की स्थापना के लिए वे सभी कर्मचारी एक रंग में देखना चाहते थे । जिन्हें बर्दी मिली उस सूची में भोलू पाठक का नाम नहीं था । इसलिए कार्यालय माफिया तिवारी ने भोलू पाठक को वर्दी नहीं दी थी बल्कि यह कहकर उसकी बेइज्जती भी खराब कर दी क़ि ,” का करबै त वर्दी लइके । सासन जी तोहार नाम काट दिए रहे । चल निकल । हवा आवै दे । “

       भोलू पाठक का मन किया था क़ि तिवारी को उठाये के ज़मीन पर फैक दें और उन्हें वर्दी मानकर फाड़ दें । मगर खून घूँट पीकर रह गए ।

भोलू पाठक को सासद जी ने कंपनी की गाड़ियों का पेट्रोल चुराकर बेचने के अपराध की सजा बतौर वर्दी देने को मना कर दिया था । इसी बात को  भोलू पाठक ने दिल पर लिया था । पिछले दो दिनों से वह सांसद जी गरिया रहा था । दफ्तर में लोग उसकी बौखलाहट का मज़ा ले रहे थे । वरुण टाइपिस्ट नयी वर्दी में आया और भोलू पाठक को मुंह चिढ़ाता घूम रहा रहा था । भोलू की उसे देखकर ही सुलग रही थी । तभी तिवारी बोला ,” अबे पंडित । तैयार रहे । सासद को दुई बजे लेकर जाना है । चार बजे जारी बाज़ार में जन सभा है । “

    भोलुआ ने कोई जवाब नहीं दिया । चुपचाप उठा और हाल से होकर बाहर आ गया । दो बजे से पहले उसने पोर्टिको में लग्ज़री गाडी लगा दी । और फिर वहां से गायब हो गया । मीटिंग ईटिंग के शौक़ीन सांसद जी ठीक दो बजे अपने लग्ग भग्गू जय और बीरू के गाडी में आकर बैठ गए । तभी सांसद जी के बगल में भोलुआ आकर ड्राइवर सीट पर बैठ गया ।

      अचानक सांसद जी की नज़र भोलुआ पर गयी तो उनका माथा घूम गया । भोलुआ चड्ढी बनियान पहने हुआ था। सांसद जी ने पुछा ,” ई का पहने है बे ?”

        “ का करी मालिक । हमका बर्दी मिलवय ने भई । आप कटवाये दिहिन । अब जउन हमरे पास होई , वही त हम पहिनब ।”  सांसद जी से कुछ कहते न बना । जेब से दो हज़ार रुपया निकाले और भोलुआ के हाथ में रखते हुए बोले ,” ले रख । बर्दी सिलाए ले अपने नाप की । ला भाग जल्दी से कपडा पहिं के आ । तीन बजे कारिक्रम में पहुंचना है ।

      भोलुआ मुस्कुराता हुआ ये गया और वो आया । गाडी जारी बाज़ार की ऒर चल दी । तिवारी फुसफुसाए के बोला “, सांसदजी हरामी हैं त भोलुआ दर हरामी है ।”

      सब एक स्वर में बोले --यहू सही है ।

---अजामिल

       

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