लघुकथा/अजामिल
नौकरी ज्वाइन किये हुए शेखर को तीन महीने हो चुके थे । तीन महीने का वह वेतन भी उठा चूका था । आज के सोच के मुताबिक़ उसकी नौकरी मज़े की थी । दस बजे वह दफ्तर आ जाता । बाकी उसके कुलीग आराम से 11-12 बजे तक आते । सेक्शन आफिसर के सामने हाज़िरी रजिस्टर पर दस्तखत करते फिर बैठकर गप्प मारते या अपनी कुर्सी पर कोट टांगकर इधर उधर निकल जाते । कोई उन्हें पूछता तो कोई न कोई उसे बता देता क़ि कोट टंगा है ,यही कही होंगे । लेकिन यह बात सच न होती । कोट टांगकर जो जाता वह घंटों न लौटता । लोग उनकी अनुपस्थिति में परेशान होते रहते ।
शेखर को ये सब बिलकुल पसंद नहीं था । उसे लगता की सरकार जब उसे वेतन देती है तब उसे मन लगाकर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ दफ्तर का काम करना चाहिए । वेतन लेकर काम न करना देश के साथ गद्दारी है । इससे विकास कार्य में बाधा आती है । काम पेंडिंग होता जाता है । जिसका खामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ता है । शेखर को महापुरुषों के बहुत से आदर्श वाक्य याद आते । वह सूक्तियाँ दोहराता और उनसे प्रेरणा पाने की कोशिश करता । दरअसल वह इस बात को लेकर बहुत परेशान था क़ि उसने तीन महीने का वेतन तो सरकार से ले लिया था लेकिन ज़रा सा भी सरकारी काम नहीं किया था । दफ्तर में किसी को चिंता भी नहीं थी क़ि वह क्या काम करता है । हालांकि शेखर चाहता था क़ि उससे काम लिया जाए पर अधिकारी थे क़ि उसे किसी काम की ज़िम्मेदारी नहीं दे रहे थे । क्यों ये समझना उसके लिए मुश्किल हो रहा था ।
काम पाने की उधेड़बुन में एक दिन शेखर ने अपने वरिष्ठ अधिकारी को एक पत्र लिख जिसमें उसने निवेदन किया था क़ि पिछले तीन महीने से उसे दफ्तर में कोई काम नहीं दिया गया है ।जिसकी वजह से वह दिन दिन भर खाली बैठा रहता है । वह वेतन ले और काम न करे यह उचित नहीं है । कृपा कर उसे उसकी सीट पर काम और उसकी ज़िम्मेदारी सौंपी जाए ।
पत्र उसने चपरासी के मार्फत अपने अधिकारी तक भेजवा दिया और उत्तर का इंतज़ार करने लगा । पंद्रह दिन गुज़र गए । एक महीना बीत गया । एक दिन जब वह खाली बैठा था तभी चपरासी ने आकर उसे बताया क़ि साहब उसे बुला रहे है ।
वह लपककर साहब के केबिन में पहुंचा। साहब ने उसे बैठने को कहा । उसकी ईमानदारी की बहुत तारीफ़ की । कहा क़ि उसके जैसे लोगों की दुनिया में बहुत कमी हो गयी है । इसके बाद अधिकारी महोदय ने अपने दराज़ से निकालकर एक पत्र उसे दिया और कहा ,” मैंने तुम्हारा पत्र सरकार को भेजा था । हमने पता लगवाया तो पता चला क़ि आपकी सीट पर वाकई कोई काम नहीं है । सरकार ने काम न होने के कारण आपका पद समाप्त कर दिया है ।इसी के साथ आपकी नौकरी भी समाप्त की जाती है । सरकार आपकी ईमानदारी से बहुत खुश है । आपने पत्र लिखकर इस पद पर खर्च होनेवाला बहुत सा पैसा बचा दिया ।”
शेखर की आखों के सामने अँधेरा छा गया । वह समझ नहीं पा रहा था क़ि उसे उसकी ईमानदारी का इनाम मिला था या सजा मिली थी ।
-- अजामिल


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