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Monday, September 22, 2014

अमरकांत की अमर कथा




हिंदी के श्रेष्ठ और कालजयी साहित्यकारों में अमर कथाकार प्रेमचंद की परमपरा को आगे बढ़ाने वाले कथाकर अमरकांत मौजूदा दौर के प्रथम पंक्ति के कथाकारों में हैं | अमरकांत का सम्पूर्ण कथा साहित्य मनुष्य की जिजीविषा और संघर्ष की गौरवशाली गाथा है | अमरकांत की कहानियां इसलिए भी दूसरे कथाकारों से अलग हो जाती हैं क्योंकि उन्होंने अपनी कहनियों में आज़ादी के बाद संघर्ष कर रहे उस आदमी की कहानी कही है जिसके सामने कोई सुनिश्चित दिशा नहीं थी | हिन्दी कथा साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कथाकार अमरकांत का जन्म 1 जुलाई 1925 में उत्तर प्रदेश के जिला बलिया के भगमलपुर नगरा में हुआ था |
          सामान्य स्तर के मध्यवर्गीय परिवार में के संसाधनों और संस्कारों में अमरकांत पले-बढे | उन्होंने बलिया से हाई स्कूल की परीक्षा पास की | उसके बाद आगे की पढाई के लिए वो इलाहाबाद चले आये | ये वो समय था जब हिंदुस्तान में आज़ादी की जंग छिड़ धुकी थी | देश के सभी नौ जवानों का रुझान स्वतंत्रता संग्राम की ओर था और युवा तेजी से आज़ादी की लड़ाई के साथ अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे थे | अमरकांत को भी आज़ादी की लड़ाई ने सम्मोहित किया | देश के प्रति उन्हें जैसे ही अपनी ज़िम्मेदारी का बोध हुआ और आज़ादी का मतलब गहरे तक समझ आया, अमरकांत इंटरमिडियट अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़ कर देश के हजारों हज़ार युवाओं की तरह 1942 के भारत छोडो आंदोलन में शामिल हो गए | 1948 में देश आज़ाद हो गया | भारत अपनी आज़ादी की खुली हवा में सांस लेने लगा इसी समय अमरकांत को अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने की सुधि एक बार फिर आई | उन्होंने अपनी पढ़ाई ज़ारी रखने के उद्देश्य से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और वहाँ से बी.ए. करने के बाद उन्होंने आगरा से अपना पत्रकार जीवन शुरू किया |
          अमरकांत ने पत्रकारिता एक पेशे के रूप में शुरू की थी लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे वो पत्रकारिता में रमते चले गए, वैसे-वैसे पत्रकारिता उनका धर्मं बन गया | उन्हें पत्रकारिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का जब गहरा अहसास हुआ तब उन्होंने बड़े सामजिक सन्दर्भों में पत्रकारिता के क्षेत्र में कई बड़े प्रयोग किये | पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए अमरकांत कभी अपनी जिम्मेदारियों से विमुख नहीं हुए | उन्हें हमेशा लगता रहा कि पत्रकारिता को जब एक मिशन के रूप में लिया जाएगा तभी इसकी सार्थकता सिद्ध हो सकेगी | पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए भी अमरकांत आरम्भ से ही रचनात्मक लेखन करते रहे | उनकी कहानियां देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होना आरम्भ हो चुकी थीं | पाठक और आलोचक अमरकांत को एक बड़े कहानीकार के रूप में देखने लगे थे | बिना किसी जल्दबाज़ी के अपने लेखन को साधने वाले अमरकांत कुछ ही समय में अपनी जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र मिलन, डिप्टी कलेक्टरी, हत्यारे सहित तमाम दूसरी कहानियों के कारण चर्चित हो गए | इसके बाद एक के बाद एक अमरकांत के दस कहानी संग्रह प्रकाशित हुए |
          अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियों को भी दो खंडों में प्रकाशित किया गया | इस बीच अमरकांत ने सूखा पत्ता, सुख जीवी, आकाश पक्षी, काले उजले दिन, बीच की दीवार, कटीली राह के फूल, ग्राम सेविका, सुन्नर पाण्डे के पतोहू, लहरें, विदा की रात आदि उपन्यास भी लिखे | इसी क्रम में स्वतंत्रता आन्दोलन की पृष्ठ भूमि पर लिखा उनका उपन्यास इन्ही हथियारों से भी प्रकाशित हुआ | इस उपन्यास में अमरकांत की कीर्ति में चार चाँद लगा दिए | अमरकांत ने बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को महसूस करते हुए बाल साहित्य भी लिखा | वानर सेना, नेउर भाई, खूँटों में डाल है, मंगरी, सच्चा दोस्त और बाबू का फैसला बाल कथा साहित्य की ऐसी पुस्तकें हैं जिनका बच्चों ने खूब स्वागत किया | अमरकांत समाज के बड़े बुजुर्गों क प्रति भी अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते रहे | सुग्गी चाची का गाँव, एक स्त्री का सफर और झगरूलाल का फैसला अमरकांत के द्वारा लिखी गयी ऐसी पुस्तकें हैं जो समाज का मार्गदर्शन करती हैं | कुछ यादें कुछ बातें और दोस्ती शीर्षक से अमरकांत ने कुछ संस्मरणात्मक साहित्य भी लिखा | अमरकांत उस वक्त और भी ज़्यादा चर्चा में आगये जब उनकी कहानी बहादुर को उत्तर प्रदेश इंटरमीडीयट बोर्ड की पाठ्य पुस्तक कथा भारती में शामिल कर लिया गया | एनसीआरटी की पूर्व प्रकाशित ग्याहरवीं कक्षा के पाठ्य पुस्तक में उनकी कहानियां मौत का नगर और बहादुर शामिल की गयीं | दिल्ली पब्लिक स्कूलों की इंटरमीडीयट की पाठ्य पुस्तकों में भी उनकी कहानी को सम्मान दिया गया | महाराष्ट्र और हरियाणा बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों में भी अमरकान्त की कहानियां शामिल की गयी इतना ही नहीं देश का शायद ही कोई ऐसा विश्विद्यालय हो कोई ऐसा कॉलेज हो जहाँ अमरकांत की कहानियों को पाठ्य पुस्तकों में शामिल न किया गया हो |
          दिल्ली से लेकर केरल तक लगभग सभी प्रद्शों के विश्विद्यालय में अमरकांत कथा साहित्य पर शोध हो चुके हैं और यह सिलसिला चल रहा है | दिल्ली, लखनऊ, जलंधर और मुंबई दूरदर्शन केन्द्रों ने अमरकांत की कहानियों पर फ़िल्में बनाई और बड़े गर्व के साथ उन्हें प्रदर्शित किया | देश के लघभग सभी आकाशवाणी केन्द्रों से अमरकांत की कहानियों का पाठ हुआ और अमरकांत की कहानियों का नाट्य मंचन तमाम नाट्य संस्थाओं ने किया | राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, आगरा, गोरखपुर, गडवाल की अनेक नाट्य संस्थाओं ने अमरकांत की कहानी डिप्टी कलेक्ट्री, मूस, हत्यारे, बस्ती, कोहासा आदि का मंचन किया | मुंबई में जाने माने वरिष्ठ रंगकर्मी पंडित सत्य देव दुबे ने अमरकांत की कहानी हत्यारे की विशेष नाट्य प्रस्तुति की जो खासी चर्चा का विषय रही | अमरकांत अखिल भारतीय इप्टा के राष्ट्रिय अध्यक्ष और मंडल के मानद सदस्य भी रहे | अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ ने उन्हें राष्ट्रिय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया | यह लेखक संघ एक लंबे समय तक अमरकांत की उपस्थिति से सम्मानित होता रहा | अमरकांत मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य परिषद और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मलेन के कई पुरुस्कारों के निर्णायक मंडल में भी शामिल रहे | अमरकांत ने साहित्य में जो भी लिखा वह पूरे मनन और धैर्य के साथ लिखा |
          अमरकांत की अपने समकालीन कथाकारों के साथ अच्छा लिखने को लेकर प्रतिस्पर्धा रही यही वजह है कि वो जो कुछ भी लिखते रहे उसकी गुणवत्ता हमेशा बनी रही | अमरकांत बहुत ज़्यादा लिखने के कभी पक्षधर नहीं रहे लेकिन अच्छा लिखने की बात उन्होंने हमेशा की | 1956 में अमरकांत की कहाँनी डिप्टी कलेक्ट्री अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत हुई | इस कहानी ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया | ये वह कहानी थी जिसने अमरकांत को कथाकार के रूप में मान्यता दिलाई | 1984 में अमरकांत का पहला उपन्यास सूखा पत्ता प्रकाशित हुआ | अमरकांत को इस उपन्यास पर न सिर्फ सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार प्राप्त हुआ बल्कि सन 1985 में उन्हें रूस की यात्रा का अवसर भी मिला | अमरकांत के लिए यह अविस्मरणीय अवसर था | अपनी रूस यात्रा के दौरान अमरकांत उन स्थानों पर गए जहाँ उनके प्रिय रूसी लेखकों की स्मृतियाँ सहेजी गयीं हैं | अमरकांत को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने भी कई बार पुरस्कृत और सम्मानित किया | सुप्रसिद्ध साहित्यकार यश पाल, अमृत लाल नागर जैसे साहित्यकारों ने अमरकांत की समस्त साहित्य सेवा को महत्वपूर्ण माना | बल्कि उनके लिए कई पुरस्कारों छतरपुर मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संग के साहित्य प्रेमियों ने अमरकांत को अमरकांत कीर्ति सम्मान से विभूषित किया | अमरकांत को इलाहाबाद विश्विद्यालय ने भी कई बार सम्मानित किया | उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने उन्हें महत्मा गाँधी सम्मान दिया | अमरकांत को मध्य प्रदेश के सबसे बड़े सम्मान मैथिली शरण गुप्त शिखर सम्मान से भी सम्मानित किया जा चूका है | साहित्य अकैडमी पुरस्कार भी अमरकांत को मिल चूका है | के.के. बिरला फाउन्डेशन के वेदव्यास सम्मान से भी अमरकांत नवाजे जा चुके हैं | सन 2012 में अमरकांत को देश का सबसे बड़ा ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है |
          इलाहाबाद के इलाहाबाद संग्रहालय में आयोजित एक कार्यक्रम में अमरकांत को ज्ञानपीठ सम्मान हिन्दी साहित्य के जाने माने आलोचक प्रोफेशर नामवर सिंह ने दिया था | इस अवसर पर देश के तमाम साहित्यकार एकत्र हुए थे | अमरकांत के कथा साहित्य का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, हंगरी और रशियन आदि भाषाओँ में अनुवाद हो चूका है और तमाम विश्विद्यालयों ने भाषा से जुड़े पाठ्यक्रमों में उनकी कहानियां पढ़ाई जाती हैं | angअंग्रेजी में फिलाडेल्फिया यूनिवर्सिटी अमेरिका द्वारा प्रकाशित हिन्दी कहानियों के अंग्रेजी संकलन ए डेथ इन डेलही में अमरकांत की कहानी हत्यारे को एसेसिंस नाम से प्रकाशित किया गया है | अंग्रेजी में पेंग्विन द्वारा प्रकाशित हिन्दी कहानियों के एक और संकलन में अमरकांत की कहाँनी शामिल है | अमेरिका की पत्रिका महफ़िल, कलकत्ता की राईटर वर्क शॉप, अंग्रेजी कथा संकलन थौट सहित इनप्रिंट, मिरर, इलेस्ट्रेटेड वीकली आदि पत्रिकाओं में अमरकांत की कहानी को ससम्मान प्रकाशित किया गया | जापान में अमरकांत का उपन्यास सूखा पत्ता पाठ्य पुस्तक के रूप में छात्रों को पढ़ाया जाता है | इतना ही नहीं अमरकांत अपने देश की लगभग सभी भाषाओँ में प्रकाशित हो चुके हैं | अमरकांत आज हिन्दी साहित्य के प्रथम पंक्ति के साहित्यकारों में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखते हैं | सबसे अच्छी बात यह थी कि अमरकांत अपने मृतु से पूर्व तक बिना थके लिखते रहे थे | उनके भीतर गज़ब का उत्साह था और अभी भी बहुत कुछ साहित्य को देने की महत्वकांक्षा थी | हिन्दी साहित्य का यह सितारा अपना पूरा जीवन पूरे समर्पण के साथ साहित्य को दे गया | हम जब कभी भी कथा साहित्य की बात करेंगे तो वह चर्चा अमरकांत की कहानियों के बगैर कभी पूरी नहीं होगी | अमरकांत अपनी कहानियों में हमेशा जीवित रहेंगे |
                                                                                                                              -अजामिल

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