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Wednesday, December 14, 2011

एक नाव किनारे पर !


दुःख-सुख के भवसागर
में हिचकोले खाने के बाद
मेरे जीवन की नाव इस घाट आ लगी है-
जर्जर देह कामनाओ की मांस-मज्जा को
छोड़ते हुए
मोह की डोरी से बंधी है मेरी आखिरी सांसे
मेरे पैरों के नीचे स्मृतियो का जल
मुझे हिला रहा है धीरे-धीरे
कोई कह रहा है इस घाट पर
यह देह मुझे छोडनी होगी और जाना होगा
उस सत्ता के पास जहाँ से नहीं लौटता
कोई कभी |

छायाकार मित्र –विकास चौहान

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