उस सन्नाटे में
जहां दूर-दूर तक नहीं है
कोई सुनने वाला
कोई चिल्ला रहा है
आज़ादी के लिए
कोई उड़ना चाहता है
खुले नीले आकाश में
पहुंचना चहता है वहां
जहां हवाओं में तैर रहे हैं
आकांक्षाओं की रोशनी में भीगे बादल
कोई आज़ाद होना चाहता है
उस तितली की तरह
जो फूलों को चूमती इतरा रही है
इस डाल से उस डाल तक
ठंडी हवा को छूकर
कोई चिल्ला रहा है
अंधेरे में छटपटाते सवालों की
मुक्ति के लिए
कोई तोड़ रहा है
जवाब मांगते आईने
किरचें बिखर रहीं हैं इधर-उधर
बंदरों की जकड़ में है जिंदगी
कोई चिल्ला रहा है
प्रार्थनाओं में
गुलामी के खिलाफ
तंत्र में बदल रहे हैं मंत्र
नक्कारखाने में कोई नहीं सुनता
उसकी गूंज
कोई नहीं उड़ पाता कभी
पैरों तले पसरी जमीन के विरुद्ध
सब चिल्लाते हैं बस
चिल्लाते हैं आज़ादी के पक्ष में
प्रतिपल कैद होता है कोई
अपने से जूझता हुआ
परम्पराओं से मिले
शब्दों का कचरा नहीं है आज़ादी
आज़ादी एक उड़ान है
अपनी ही चेतना के विरुद्ध
आज़ादी देह की नहीं मन की
पार्थ! आत्मा की किताब में लिखो
आज़ादी के इस मतलब को।
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उम्दा सार्थक अभिव्यक्ति
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