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Thursday, July 28, 2011

सामने वाला पेड़ और मैं !

मुझमें और सामने वाले पेड़ में
क्या कोई अन्तर है
हम दोनों ही रेंग रहे हैं
परिणामों की तरफ
पहचान के लिए मैं बदलता हूं कपड़े
और पेड़ पहनता है नए पत्ते
समय के शिलालेखों पर
लिखा जा रहा है हमारा जीवन
मौसम हमें मिटा रहा है लगातार

यह महसूस करने के अनेक रास्ते हैं
कि पेड़ फलों से लदा है
दूसरों के लिए
छायादार हैं उसकी पत्तियां
परमार्थ में लगी कितनी सार्थक है
उसकी जीवन यात्रा
एक प्रेरणा है जो जागती है
मेरे भीतर पेड़ को देखकर
और मैं पेड़ का कृतज्ञ हो जाता हूं
बेहद कृतज्ञ।

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