चाकू, विचार और धर्म की किताबें लेकर
बच्चे निर्वसन के बाद
खेल के मैदान में आ गये हैं -
राजनैतिक हादसों से खुद को
बचाते हुए
घरों में खामोशी है
मौसम खिड़कियों में फँसा है पतंग की तरह
पल्ले झूलते हैं - नकारात्मक चेहरे
फड़फड़ाते हैं दड़बे में - मुर्गियों से
बरबादी और मजबूत कर रही है उन्हे
और अपने किले में
कमजोर हो रहे हैं ये
अपने-अपने पीछे रखे गॉवतकिये पर
उनींदे लेटे हुए
वे अब रह-रह कर चौंकेगे
तालियाँ बजायेंगे - उनकी हर बेवकूफी भरी बात पर
वक्त को वक्त से समझकर
जो प्रार्थना में है आज
गिरते-पड़ते-संभलते जीवन संर्घष में
हर पल टकरा रहे हैं जो
बच्चे उन्हीं की तस्वीर चस्पा करेंगे
कल अपने घरों की दीवारों पर
देखिएगा
चापलूस और चाटूकार
फेंक दिए जायेंगे रद्दी की टोकरी मंे
अंधेरा बढ़ता है तो बढ़े
ठुक-ठुक करता चलता है - जनता का इंसाफ
अभिव्यक्तियों को कुंठित करते
कला अकादमियों के अधिकारियों
साहित्य के मठाधीशियों
तुम अब मरे चूहे की तरह
बदबू कर रहे हो - दुनिया में
अब नहीं चलेगी तुम्हारी एक भी चाल।
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