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Sunday, June 12, 2011

अगली उछाल तक !

कोई यकीन यहीं पर हादसा बनता है
अलस्सुबह जब दबे पाँव पिछले रास्ते से
निकलकर गायब हो जाना चाहता हूँ
वे चिरपरिचित गंध पाकर
एक-दूसरे को ढ़केलते, चीखते-चिल्लाते
गहरे अंधेरे से निकलकर
डूबती आँखें और फैली हथेलियाँ लिए
रुबरु हो गये हैं - हमेंशा की तरह - बेबस

उनके नीचे जमींन रही है
और उनके ऊपर आकाश
वे गर्म हवाओं से परेशान हैं
बदलते मौसम में
किसी बिजूखे की तरह
पाला-खाई फसल की रक्षा में तैनात
अपने कमजोर हाथों को समानान्तर फैलाकर
वे चुपचाप खड़े हैं पेड़ों की तरह

उनके बीच से एक मौसम दूसरे मौसम में
दाखिल हो रहा है सनसनाता हुआ

खुद को बचाने के उपक्रम में
उन्होने पहन रखा है
काली-हाँडी का ठनकदार भ्रम
और वक्त है कि उन्हे ज्यों का त्यों
बनाये रखने की फिक्र में
कीलें लिए खड़ा है

ये सब अचानक हो जाता है
जब मैं पिछले रास्ते से निकलकर
गायब हो जाना चाहता हूँ....

दरअसल मैं एक जादूगर हूँ
तिलिस्म के जंगल में भटकता हुआ
और वे सलीब पर लटके बहादुर लोग
धीरे-धीरे सुगबुगाते तैयार होते लोग

सोचता हूँ और भयाक्रान्त हो उठता हूँ
कल, अगले कल जब मेरी वहश़ी आकांक्षाओं के
काले गिद्ध डरावनी आवाज करते
इन जिंदा लाशों पर मंडरायेंगे -
ये हाथों को समेटकर मेरी तरह
दबे पाँव आगे बढ़ेंगे और मुझे घेर लेंगे
मैं उड़ भी पाऊँगा
इसके पहले वे मुझे नोचकर
आकाश में उछाल देंगे

हाँ ये सलीब पर लटके बहादुर लोग
लेकिन कोई यकीन यहीं पर हादसा बनता है।

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