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Sunday, June 12, 2011

जो कुछ हाशिए पर लिखा है !

जो कुछ हाशिए पर लिखा है
मैं सबसे ज्यादा परेशान हूँ
उसे ही मुकम्मल करने के लिए
बार-बार हाशिए पर
फेक दिया जाना ही तो
सबूत है जिंदा होने का

बिकने-बिकाने की इस चमकदार दुनियर में
मछली की तरह सड़ने से बेहतर है
हर चीख की मुखाल्फत में
सच को जोरदार ढंग से कहा जाय
देखिएगा खोटे सिक्के इस तरह
खुद--खुद चलन से बाहर हो जायेंगे

कोई अच्छी चीज नहीं है टिकाउपन
गति से सद्गति तक सिर्फ घूमते जाना ही
सिद्ध करता है तुम्हारा होना
अरुचिकर हो जाता है जीवन
अगर जिद्द की तरह टिका रहता
ठनठनाता हुआ काल के विरुद्ध

कयामत के दिन शायद कुछ भी बचे
मुमकिन है मारे जायें पृथ्वी पर
दो तिहाई लोग
पुनर्जीवन के लिए तब भी काफी होगा -
कोई एक सोचने वाला
और मलबों के नीचे सुरक्षित निकाली गयी
ढ़ेर-सी किताबे

सभ्यता को बचाने के लिए
बहुत जरुरी हैं कानून
लेकिन कानून कैसे बचेंगे बिना सभ्यता के ?

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