तुम बहुत आत्मीय हो रहे हो दोस्त
इसीलिए भयाक्रान्त हो उठा हूँ
अक्सर ऐसा हुआ है
जब कि मैं रंग-बिरंगे सपने देखता
कछुए की पीठ पर बैठ
ग्लोब नापने का साहस कर बैठा हूँ
तभी गर्दन खा गया है कछुआ
और मैं सपनों को
बिखरता निराकार होता देख
जड़ हो गया हूँ उसकी पीठ पर
कभी-कभी वे मुझे
नायक बना कर ले गए हैं
और भीड़ में अकेला छोड़कर भाग आए हैं
नज़र बचाकर
मैं अकेला प्रतीक्षा ही करता रह गया हूँ
वे मेरे दोस्त हैं मेरे हितैषी
इसीलिए ये आत्मीयबोध
लगा कि तुममें एक नदी है जो सूख जाएगी
मुझमें एक संशय है जो मुझे ही खा जाएगा
कहीं कुछ भी नहीं
सिवा अपने खोखलेपन को
मृग-मरीचिका दिखाने के
एक हवा है
जो कमरे में एक दरवाजे से
दाखिल हुई है
दूसरे दरवाजे से निकल जाएगी
बस एक शून्य रह जाएगा
मेरे और तुम्हारे बीच
परिचय के नाम पर
परिचय-पत्र खो रहे हैं
परिचय सामर्थ्य
हर अपना-पराया और पराया
लगता है आदमी की गंध से परे
जुड़कर बात करने की स्थिति
हो गई है काले धंधे का रहस्य
प्रपंच की आग जो जला रही है हमें
हमारे अस्तित्व के साथ
अलग से मैं भी एक कछुआ हूँ
मौसम के धुंए को नकारने के लिए
अपनी गर्दन खा लूँगा
पैरों को समेटकर बन जाऊँगा निरर्थक
माफ करना मेरी बेअदबी
मैं भयाक्रान्त हो उठा हूँ
तुम आत्मीय हो रहे हो
बेहद आत्मीय।
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