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Wednesday, June 8, 2011

औरतें जहाँ भी हैं !

दरवाजे खोलो
और दूर तक देखो खुली हवा में

मर्दों की इस तानाशाह दुनिया में
औरतें जहाँ भी हैं - जैसी भी हैं
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद हैं - वे हमारे बीच
अंधेरे में रोशनी की तरह33
औरतंे हँसती हैं - खिखिलाती हैं औरतें
खुशियाँ बरसाती हैं सब तरफ
छोटे-छोटे उत्सव बन जाती हैं औरतें
औरतें रोती हैं - सिसक-सिसककर जब कभी
अज्ञात दारूण दुःख में भीग ताजी है यह धरती

औरतें हमारा सुख हैं
औरतें हमारा दुःख हैं
हमारे सुख-दुःख की गहरी अनुभूति हैं ये औरतें

जड़ से फल तक - डाल से छाल तक
वृक्षों-सी परमार्थ में लगी हैं - ये औरतें
युगों से कूटी-पीसी-छीली-सुखायी और सहेजी जा रही हैं

असाध्य रोगों की दवाओं की तरह
सौ-सौ खटरागों में खटती हुई
रसोईघरों की हदों में
औरतें गमगमाती हैं - मीट-मसालों की तरह
सिलबट्टों पर खुशी-खुशी पोदीना-प्याज की तरह
पिस जाती हैं औरतें

चूल्हे पर रोटी होती हैं औरतें
यह क्या कम बड़ी बात है
लाखों करोड़ों की भूख-प्यास हैं औरतें

पृथ्वी-सी बिछी हैं औरतें
आकाश-सी तनी हैं औरतें
जरूरी चिट्ठियों की तरह
रोज पढ़ी जाती हैं औरतें
तार में पिरो कर टांग दी जाती हैं औरतें
वक्त-जरूरत इस तरह
बहुत काम आती हैं औरतें

शोर होता है जब
औरतें चुपचाप सहती हैं ताप को
औरतें चिल्लाती हैं जब कभी
बहुत कुछ कहतीं हैं आपको

औरतों के समझने के लिए तानाशाहों
पहले दरवाजे खोलो
और दूर तक देखो खुली हवा में

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