Social Icons

Pages

Wednesday, June 8, 2011

आधी दुनिया की व्यथा-कथा !

अनंत ताकतवर उँगलियों के नीचे
गूँगी-कठपुतलियों की तरह
मैं जब कदम-कदम पर
बदली जाती हूँ उनके अर्थलय में
तब खुले आकाश में
उड़ानें भरने
किसी फूल के खिलने या
विरोध में उठी बाँहों का मतलब
एक भ्रम की शुरुआत होता है

मैं एक कमजोर कैदी की तरह
उनकी महत्वाकांक्षाओं से उपजी
उनके पिंजड़े के मोहजाल में फँसी
आगामी कल का
अविकल अनुवाद होती हूँ -सीमाबद्ध
सुरक्षा के बहाने
पिता, पति और पुत्र
तीन भ्रम हैं मेरे जीवन के

और मैं उनके बनाये
मजबूत पिंजड़े में छटपटाती
आजादी के दिन का इंतजार कर रही हूँ
एक यात्रा से दूसरी यात्रा तक
थक रही हूँ हाँफती हुई - हर पल

कहीं कुछ नहीं बदलता
मेरे आस-पास

रोज टूटता है
मेरा मन
शेष होते हुए सिर्फ........
-निकिता भट्टाचार्या

No comments:

Post a Comment