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Sunday, June 12, 2011

।। ईर्ष्या ।।

जब मन और आत्मा
शामिल होते हैं किसी उत्सव में
वह पिशाचिनी चुपके से
हमारी आकाक्षांओं के घने पेड़ से उतरकर
सवार हो जाती है,
रक्त में बहने लगती है - ठठाकर हँसती -
उपहास करती हुई चुड़ैल की तरह ....
पत्ते की तरह काँपता है शरीर
सभी उड़ानें रद्द हो जाती हैं, अचानक

बड़ी कुत्ती चीज है कम्बख्त,
घर की घाट की
हजार इच्छाएं ठाट की
सुलगती है पर्त-दर-पर्त
जैसे जलती है राख के नीचे आग
आँख
मिचमिचाते हुए ..........

राजनीति की आपा है,
मंथरा की चाची
जरा-सा मौका मिला - कि
पग घुंघरू बाँध मीरा नाची.

रानी-महारानी
सब उसके ठेंगे पर.

सत्य की मुखाल्फत में
नपुंसक आंदोलन है नामुराद

गुप्तरोग से भी घातक है, ससुरी
अवैध सम्बधों का दस्तावेज़
एड्स से भी ज्यादा ख़तरनाक

इसकी मोहब्बत में जो फँसा
बस समझो गया काम से !

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