बाल कहानी
और घंटी यों बंधी/ अजामिल
पूसी की शरारतें दिन पर दिन बढ़ती जा रही थीं। बक्सों के पीछे और स्टोररूम में रहनेवाले चूहों की जान हर वक्त खतरे में रहती। पहले तो पूसी चुपके से आकर सुबह-शाम एक न एक चूहा पकड़ ले जाती थी, लेकिन अब तो वह उन्हें बेकार में डराने भी लगी थी । अब देखो, वे सब तो बैठे मुरब्बे का चटखारे ले-ले कर मजा ले रहे हैं और वह दबे पांव आकर दरवाजे की ओट से करती - म्यांऊं...बस वे सब जान बचाकर, दुम दुबकाकर एक-दूसरे पर से कूदते-फांदते जैसे भी होता, इधर-उधर जा छुपते ।
पूसी शान से भीतर आती और इधर-उधर देखकर सोचती- ओहो, सब के सब जा छुपे, डरपोक कहीं के ! लाओ, जरा मुरब्बा ही चखकर देखू । बड़े मजे से खाते हैं ये सब । - पूसी मुरब्बा चखती और नाक सिकोड़कर चली जाती। सब चूहे छुपे हुए चुपचाप यह तमाशा देखा करते। उसके जाते ही उन्हें अपना लंच या डिन' फिर शुरू करना पड़ता । बड़े चूहे छोटे चूहों को अकेले दूर तक घूमने जाने को मना करते । सचमुच वे सब बड़ी परेशानी में थे। बूढ़ा चूहा तो सचमुच बड़ा परेशान था। उसकी उम्र भी अधिक थी और वह कुछ मोटा भी था इसीलिए उसे भागने में, कूदने में बड़ी परेशानी होती थी। दांतों के कमजोर हो जाने की वजह से उसे कुतरने में भी तकलीफ होती थी इसलिए वह धीरे-धीरे खाता था।
एक दिन जब वह स्टोररूम में आया, तो देखा सारे के सारे चूहे खाने-पीने में जुटे थे। उन्होंने पापड़ों का डिब्बा बड़ी मेहनत करके खोला था और वे उनको ही कुतर रहे थे। कच्चे पापड़ ! बूढ़े चूहे के मुंह में पानी आ गया । कच्चा पापड़ उसे बेहद पसंद था, लेकिन वह इस खूबसूरत मौके को खोना नहीं चाहता
था। उसने चूहों को पुकारकर अपने पास बुला लिया । बूढे चूहे की पुकार सुनकर वे सब पापड़ छोड़ लपककर आ गए ।
कुछ छोटे चूहे अब भी पापड़ों का मजा ले रहे थे। जब सब चूहे आ गए, तो बूढ़े चूहे ने कहा-भाइयो, एक खुशखबरी सुना रहा हूँ। कान खोलकर सुन लो, पूसी अपनी बहन से मिलने पड़ोस के बंगले में गई है । सुना है , उसने पूसी को दूध की दावत दी है । उसके आने में अभी दो घंटे लगेंगे । तब तक हमें कोई निर्णय कर लेना चाहिए । आखिर हम कब तक पूसी से डरकर भागते फिरेंगे।
एक जवान चूहे ने कहा-हमें फौज बनाकर उस पर हमला करके उसे मार डालना चाहिए। इस पर बूढ़ा चूहा बोला-यह कैसे हो सकता है ? हम लोग तो पूसियों से हमेशा डरते आए हैं। इस पूसी से डरना भी हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। लेकिन आजकल उसकी शरारतें इतनी बढ़ गई हैं कि हमें उससे हर वक्त चौकन्ने रहना पड़ता है।- फिर कुछ देर रुककर वह आगे बोला-जैसा कि अभी उस चूहे ने कहा कि हमें एक फौज बनाकर उसे भगा देना चाहिए। मैं मानता हूँ , एकता में बल है । हम एक होकर उसे भगा सकते हैं। लेकिन इसमें उसके खूखार पंजों की लपेट में आकर हमारे भाइयों का नुकसान हो सकता है । मैं चाहता हूँ कि कोई ऐसा शांतिपूर्ण ढंग हो, जिससे बिना लड़ाई-झगड़े के हम इस मुसीबत से छुटकारा पा सकें ।- इतना कहकर वह चुप हो गया और इधर-उधर देखने लगा।
सभी चूहे शांत थे। कुछ सोच रहे थे और कुछ पीछे बैठे खुसुर-पुसुर बातें कर रहे थे। तभी एक चूहे ने कहा-चूहे चाचा, हमें पूसी के गले में घंटी बाँध देनी चाहिए। इससे वह जहां कहीं भी होगी, हमें उसका पता रहेगा और हम समय रहते अपनी रक्षा कर सकेंगे।
बूढ़े चूहे ने कहा-कहते तो तुम ठीक हो, लेकिन घंटी बांधेगा कौन ? सभी तो उससे डरते हैं।
फिर चुप्पी छा गई । सब के सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कैसे, क्या किया जाए। आखिर एक चूहे ने चुप्पी तोड़ी-चूहे चाचा, अगर हम चालाकी से काम लें, तो घंटी बांधी जा सकती है। हमें एक खेल प्रतियोगिता करनी चाहिए जिसमें पूसी को घंटी इनाम देकर उसके गले में बांध देनी चाहिए।
सब चूहे एक साथ खुशी से उछल पड़े-वाह , वाह क्या आइडिया है ! इस तरह से तो हम सचमुच सफल हो सकते हैं।
उसी दिन , रात को कुछ नौजवान चूहे घंटी की खोज में निकल पड़े। सारा घर छान मारने पर आखिर में दादी की पूजा वाली।अलमारी में चूहों को एक घण्टी मिल ही गई । उसे खींच-खांच कर किसी तरह उठा लाए तथा उसमें डोरी डालकर उसे अच्छी तरह तैयार कर लिया और सुरक्षित स्थानों पर बैठकर सब पूसी का इंतजार करने लगे, बड़े चूहों ने छोटे चूहों को आज्ञा दी कि वे छुपे बैठे रहें। आज हम सब पूसी से बातें करेंगे। मान गई, तो कहना ही क्या, कहीं नाराज हो गई, तो सबको जान बचाकर भागना पड़ेगा।
रोज की तरह पूसी उस दिन भी आई । दरवाजे पर खड़ी होकर बोली-म्याऊँ - बस खटर-पटर बंद हो गई। सब चूहों की सांस रुक गयी । पूसी दबे पांव भीतर आई, इधर-उधर देखा। खुसुर-फुसुर फिर शुरू हो गई। फिर सब चूहों ने एक स्वर में कहा-पूसी मौसी, नमस्ते!
-म्याऊं ! म्याऊं - आज तुम लोग भागे नहीं ? उसने पूछा और बैठ गई।
-अरे वाह, मौसी, हम भागें क्यों ? हम तो आपकी इज्जत करते हैं । अपने से बड़ों की इज्जत करनी चाहिए न - बूढ़े चूहे ने कहा
-म्याऊं ! म्याऊं ,हां हां, लेकिन....- बूढ़ा चूहा बीच में ही बोल पड़ा-बात यह है, पूसी मौसी, कल हम एक खेल प्रतियोगिता कर रहे हैं । आप तो हम सभी से बड़ी हैं। अगर आप आएं और प्रतियोगिताओं में भाग लें, तो हमारे आयोजन की शान बढ़ जाएगी।
-हां हां, क्यों नही,आ सकती हूँ। लेकिन खेल क्या क्या होंगे ? पूसी फूली नहीं समा रही थी।
-वैसे तो, मौसी, ‘लम्बी कूद' का पहला खेल होगा।
-अच्छा, तब मुझ से अधिक कौन कूद सकेगा?-पूसी ने पूछा। "कोई नहीं, पूसी मौसी।लेकिन हम लोग कोशिश तो कर ही सकते हैं। वरना इनाम आपको तो मिलना ही है।
"अरे, इनाम भी मिल रहा है ?-पूसी ललचा गई।
"हां, इनाम भी मिलेगा। तो हम पक्का समझें कि आप आएंगी ? "हां हां, पक्का हो समझो-पूसी उठ खड़ी हुई।
"पर एक शर्त है, पूसी मौसी, आप वायदा कीजिए कि कम से कम कल आप हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाएंगी । हम लोग निडर होकर आपका स्वागत कर सकेंगे और इधर -उधर घूम सकेंगे- बूढ़े चूहे ने कहा ।
पूसी मुस्कराई -अच्छा जाओ, कल तुम सब की छुट्टी, खूब ठाट से घूम-फिर सकते हो। हां, कितने बजे आना है मुझे ?
बूढ़े चूहे ने उत्तर दिया- यही कोई नौ बजे तक । अच्छा नमस्ते, पूसी मौसी - पूसी चली गई और सारे चूहे तैयारी में लग गए ।
दूसरे दिन नौ बजे बक्सों के पीछे और स्टोररूम में रहनेवाले सारे चूहे लंबे बरामदे में एकत्र हुए। लंबी कूद-प्रतियोगिता द्वारा पूसी के गले में घंटी बांधी जा रही है, यह सुनकर ड्राइंगरूम में किताबें कुतरने वाला चूहा भी अपनी बीवी चुहिया और चार बच्चों के साथ खेल देखने आया था । पूसी के आने के पहले इनाम में दी जाने वाली घंटो लाकर रख दी गई। सभी लोग बस पूसी का इंतजार कर रहे थे। छोटे छोटे चूहे बड़े खुश थे, क्योंकि अभी उन्हें बड़ा अच्छा खेल दिखाया जाने वाला था।
तभी पूसी के आने की आहट हुई। वह लॉन के पास से चली आ रही थी। इतने चूहों की भीड़ देख कर वह मुस्कराई और गरदन हिलाकर बोली-म्याऊं।
चूहों ने कहा-चूं-चूँ चूँ। नमस्ते, पूसी मौसी ! आइए । हम आपका ही इंतजार कर रहे थे। अब खेल शुरू करेंगे।
पूसी शान से एक ओर जाकर बैठ गई । खेल शुरू हुआ, एक के बाद एक चूहे आ-आकर लंबी लंबी कुदानें लेने लगे। पूसी बैठी मुस्कराती रही। अंत में बूढ़े चूहे ने पूसी मौसी से कहा-आइए, पूसी मौसी, आप भी कुदान लगाइए । फिर सबसे अधिक लंबा कूदनेवाले को इनाम दिया जाएगा।
पूसी मुस्कराते हुए उठी और चारों ओर देखकर एक लंबी कूद लगा गई। चूहों ने तालियां बजाई और वाह-वाह की। बूढ़े चूहे ने बताया कि पूसी मौसी सबसे अधिक कूदी हैं। इसलिए इनाम उन्हें ही दिया जाएगा।
पूसी को बुलाकर, घंटी लाई गई। बूढ़े चूहे ने कहा - यह मैडल
आज हम आपके गले में पहनाएंगे। क्या आप हमें इसकी आज्ञा देंगी ?
पूसी ने मुस्कराते हुए सिर झुका दिया। चूहों ने घंटी को पूसी के गले में बांध दिया और जब उन्हें विश्वास हो गया कि पूसी मौसी उसे अकेले नहीं खोल सकेंगी, तो वे बेहद खुश हुए। पूसी ने उन्हें चलकर दिखाया। सभी चूहों ने देखा और सुना कि पूसी के गले की घंटी बिलकुल खतरे की घंटी की तरह बोल रही थी-टिन्-टिन्-टिन् ।
आयोजन समाप्त हो गया।
दूसरे दिन पूसी ने महसूस किया कि चूहे बिना मुंह के रास्ते गए ही पेट में भयंकर उछल-कूद मचा रहे हैं ! उन्हें शक हुआ कि शायद सब चूहे घर छोड़कर कहीं और चले गए हैं। बेचारी वह इलाका ही छोड़ गई।
**अजामिल
***सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक के बाल कहानी संग्रह -और घण्टी योन बंधी -से
चित्र: श्रीमती आशा व्यास
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