Social Icons

Pages

Wednesday, August 21, 2013

सूरज के फूल !

सूरज के फूल अर्पित करूं तो किसे ?

आज़ादी अब भाषा की केंचुल बदलकर
बैठ गयी है
आज़ादी अब खूंटे से बंधे रहने का नाम है
आज़ादी अब पिंजरे में अंडे देने का नाम है
आज़ादी अब कुत्ते से भौकने का नाम है
आज़ादी अब रह रहकर चौकने का नाम है

जनतंत्र से कट गए हैं-जन
रह गए हैं- तन्त्र
कर्णधार मन्त्र--कुर्सी से चिपके रहने के
हर सुबह मंच से उछाली जाती है हमारी कीमत
आकड़ों की भाषा में पढ़े जाते हैं हम
एक वोट की सार्थकता खोज ली जाती है
हे ईश्वर ये कैसा देश है
ये कैसे लोग हैं...

--कविता व छायाचित्र :अजामिल

No comments:

Post a Comment