-अजामिल
युद्ध कही भी हो- हमारे भीतर या बाहर-
अपवित्र है
धर्म यहीं से जाता है अधर्म की तरफ
विध्वंस और सजनात्मकता के बीच
जिन्हें शान्ति की तालाश है
वे युद्ध असंभव करेंगे पृथ्वी पर
और अधर्म के विरुद्ध खड़ा करेंगे प्रेम को
बाहर भी-भीतर भी
युद्ध कही भी हो मानो यह अपवित्र है...
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