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Monday, January 2, 2012

ताला - चाभी !

पतित नैतिकता और सूक्ति वाक्यों
के मद्धिम पड़ते उजाले की अवैध संतान हैताला-चाभी
ताले भ्रम हैएक निष्ठा के
... जबकि चाभियाँ छलछंद हैताजी हवा कोसमर्पित
खुशबू की तरह
गुच्छो में खिलखिलाती है चाभियाँ
कमर पर लटकी तो
जेवर हो जाती है चाभियाँ
घूमती-फिरती हैयहाँ- वहाँइस जेब से
उस जेब तक
एकनिष्ठ ताले इंतज़ार करते है उम्र भर
अपनीअपनी चाभियों का
जीवन के महारास में
श्रीकृष्ण की तरह बहुरूपकार है चाभियाँ
राजे-रजवाड़ों की तरह कई-कई
बीबियाँ बन जाती है चाभियाँ
सुरक्षा में तैनात ताले
लटके रहते हैबेताल की तरह
दरवाज़ेतिजोरियो की छाती पर
शैतानो की नाक में नकेल है ताले
चाभियाँ मेनका है
ऋषि की तपस्या भंग करने वाली
सुमार्ग से कुमार्ग तक
महापुरुषों को ले जाती है चाभियाँ
चाभियाँ के पास सुरक्षित है
मालिकाना हक़
ताले तो चौकीदार है
रहस्यों की हिफाज़त करने वाले
ताले आधे-अधूरे है
चाभियाँ के बिना
चाभियाँ अगर राह भटक जाए
तो कभी नहीं लौटती
अपने तालो के पास
हर उम्र के ताले
खुशीखुशी रह लेते है
चाभियाँ के साथ
तालो को संभालना है
तो सीखना होगा सबसे पहले
चाभियाँ को संभालना


छायाचित्रविकास चौहान

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