जबकि दुनिया बहुत खूबसूरत है
लोग खूबसूरत हैं
झरने के ठंडे पानी की तरह
समय की चिकनी चट्टानों पर फिसलते हुए
एक सधी हुई लय में-
क्यों अकेले रहा जाए
एकांत में खुद को तलाशते हुए.....
कुछ कदम किसी के साथ चलना
हाथ पकड़कर - काँधे पर सर रख देना
दरवाजे खटखटाना - सतत्
जीवन में आते-जाते जोखिम के बीच
एक उम्मीद के साथ
जमीन के नीचे दबा है कोई बीज
जैसे गर्भ में कोई बच्चा
अंगड़ाई लेता है
जैसे वृक्षों पर आते हैं नए पत्ते
जैसे हवा घुलती है प्राणों में
जैसे ईश्वर को अर्पित होती हैं- हमारी प्रार्थनायें
क्यों खामोश रहा जाए/ जबकि लोग खूबसूरत हैं
झरने के ठंडे पानी की तरह।
नकली और थोथे जीवन की काल कोठरी में
दम तोड़ने से बेहतर है-
हम अपनी आवाज को पहचानें
विरोधी स्वरों के घमासान में
स्वयं को सुनें - बुद्धि और विचार की कसौटी पर
खुद को जांचते-परखते हुए-
अतिक्रमण से बचकर !
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आप का ब्लोग में एक मार्मिकता हैं जो दिल को एक अलग अहसास कराती है
ReplyDeleteआदरणीय अजामिल जी, अब मैं आपकी कविताओं पर कुछ कैसे लिखूं?आप मेरे फ़ोटोग्रैफ़ी के गुरू जो ठहरे---हां इतना अवश्य कहूंगा कि आपकी इस कविता में आपने प्रकृति और सम्वेदनाओं का इतना खूबसूरत कोलाज बनाया है जिसका प्रभाव हमें मुग्ध और चकित करता है। हार्दिक शुभकामनाएं।
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