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Wednesday, November 2, 2011

बेटियाँ !

(एक)
जिन्दगी की आपाधापी में
जब सहारे छूटने लगते हैं मँझधार में
मन उदास हो जाता है-अपने से लड़ते हुए
बेटियाँ चुपके से आती हैं सपनों में
थकी-हारी देह को सहलाने-दुलराने के लिए
हारे को भी हारने नहीं देती बेटियाँ।

बेटियाँ हाथ पकड़ लेती हैं तो
अच्छा लगता है
आधे-अधूरे नहीं रह जाते हम
इस महासमर में जबकि हमें उस ओर जाना है
बेटियाँ हमें आश्वस्त करती हैं
सकुशल यात्रा के लिए
बेटियाँ हमारे स्वर्ग हैं
बेटियाँ भरोसा हैं- ईश्वर का
अंकुरित-पुष्पित और पल्लवित होती बेटियाँ
एक खूबसूरत दिन की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हैं- हमारे बगीचे की
बेटियाँ हमारी जिन्दगी जीने का
सबसे खूबसूरत बहाना हैं।
(दो)
माँ की पवित्र कामनायें हैं बेटियाँ
पिता के सात जन्मों के पुण्यों का फल हैं बेटियाँ
पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना किसी को नहीं
मिलती हैं बेटियाँ
प्रकृति के संकीर्तन के बाद
घर में आ गयी हैं बेटियाँ
तो प्यार से सहेजो
इस कुल देवी माँ को !
(तीन)
बेटियाँ खिलखिला रही हैं
दूर कहीं मंदिर में घंटियाँ बज रही हैं
बेटियाँ गा रही हैं
जीवन का पवित्रतम सच कहा जा रहा है
पूरी शिद्दत से
बेटियाँ नाच रही हैं
पूरी सृष्टि नाच रही है आनन्द मंगल की कामना लिए हुए
बेटियाँ बुनियाद हैं - नाते-रिश्तों की
बेटियाँ विस्तार हैं कहे-अनकहे सत्य की
बेटियाँ पृथ्वी हैं
बीज हैं बेटियाँ
गीत हैं - साज हैं बेटियाँ
रस्मो-रिवाज हैं बेटियाँ

बेटियों के रहते
कौन रोक सकता है मकान को घर बनने से !
बेटियाँ गर्भ में हैं
प्रतीक्षा करो इस सौभाग्य के
पृथ्वी पर
अवतरित होने की !

3 comments:

  1. बेटियां पृथ्वी हैं
    बीज हैं बेटियां
    गीत हैं-साज हैं बेटियां
    रस्मो-रिवाज हैं बेटियां

    वाह!!!!! मन को छूने वाली कवितायें ....

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  2. मन को छू गईं कविताएँ !!

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