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Saturday, October 29, 2011

डर !

पहले ऐसा कभी नहीं हुआ- कभी नहीं,
जब जिंदगी और मौत के बीच से
गुजरते हुए/वह समय के
इतना करीब रहा हो.......

कभी लगता कि वह
यहीं कहीं छुपा है/हमारे दिलों की
अंधेरी गुफाओं में....

जब कभी सुनायी पड़ता उसका अट्ठाहस
धमाके के साथ काँपने लगती पृथ्वी की सतह
लगता- वो यही कहीं है- चट्टनों से
टकराता हुआ
ऐसा कभी-कभी ही होता
जब टकराती सत्ता की परतें- इतिहास में
शामिल होने के लिये.....

जरा सोचिए !
एक ना-मुमकिन चारदीवारी के पीछे
खुफियागीरी कर रही हो आँखें
एक हाथ दूसरे हाथ का भरोसा न कर रहा हो
जब बेहिसाब खतरनाक हों उसके इरादे
मकसद की पहचान न कर पा रहे हों- दानिशमंद
दुनिया गौर से सुन रही हो- उसकी चीख
कोई तो तरकीब होगी
उस बदजात हवा का रुख मोड़ने के लिए !

आग के गोले की तरह
वह धीरे-धीरे सरक रहा है
रेंग रहा है हमारी शिराओं में
खिसक रहा है आत्माओं की तरफ- रफ्तः-रफ्तः
हमारे भीतर के उबाल को
बर्फ के मानिंद से ठंडा करता हुआ !

बर्दाश्त की हदों में
वह जकड़ रहा है-
पूरे सच को- उलट-पलट करने के लिए !
ताकि जब मौत
दरवाजे पर दस्तक दे
और वह ठठाकर हँसे

हमारा मजाक उड़ाते हुए.......

फिलहाल वह छुपा है-हमारे भीतर
चालाक चीते की तरह-
मौके की तलाश में !
हमें फलक से गायब करने के लिए ।।

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