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Sunday, June 12, 2011

साजिश में फिर !

मेरे लिए लड़ने वाले लोग,
लो मुझे बहस में उछालकर
अपने-अपने आरामगाह में चले गये हैं
और मैं/अपने गाँव में ताजे कसे फिकरे की तरह
मौसम पर असरकारी होता हुआ
समारोह का नायक घोषित किया जा रहा हूँ
अखबारों की सुर्खियों में गाया जा रहा हूँ

वे एक बार फिर मुझे साजिश के दर्दनाक
हिस्से में सौंप गये हैं / फुसलाकर / वक्त को
और मैं सड़क पर खड़ा
दूरदराज प्रतीक्षारत
बूढ़े पिता / ममतामयी माँ / मोह भरी बहन
स्वप्नदर्शी पत्नी और मैले-कुचैले बच्चों के चेहरे पर
उग आने वाले चेहरे के लिए
चालाकी भरे जवाब तलाश रहा हूँ

इतने बड़े यातना शिविर में
पिंगपांग की गेंद की तरह
एक मेज से दूसरी मेज पर
हल्की चोटों पर फेंका जा रहा हूँ

मेरे हाथों में पर्ची थमाकर
वे गद्दीनशीन होने की प्रतियोगिता मंे
व्यक्तिगत लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं -
राजनैतिक अखाड़ों में
जी हाँ, मेरे लिए लड़ने वाले लोग........

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