चिरपरिचित वर्तमान
धधकता आग का जंगल
चलो पुराने संदर्भ ही उलीचें
घंटे भर बैठें हरी घास पर
बातें बस बातें हों,
यादों की हथेलियों पर सरसों बोयें
प्रश्नों को प्रश्नों से सींचें।
भूत तो भूत हुआ
उलट गये पांव
गर्म हवाओं से डरता है गांव
भुतहे हो गये पैतृक बगीचे।
इतिहासों से लिपट गये
मकड़े और जाले
बन्द खिड़की-दरवाजों पर प्रश्नांे के ताले
कहां गुम हो गये वे धूप के गलीचे।
बेअसर हो गये
काले ताबीज
चेहरे से चेहरे तक उकताहट खीज़
वशीकरण जीता है बस आंख मींचे।
घुने हुए आशीष
थोथी दुआयें
कर्म किए कर्मफल कड़वी दवायें
ताश के महल ढहे नीचे और नीचे।
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