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Wednesday, June 8, 2011

रोटी एक कविता है !

मुझे एक ऐसी कविता की तलाश है
जिसे मैं रोटी में तब्दील कर सकूँ

मैंने पिता की ओर देखा-
कमजोर छन्द की तरह टूट गये थे- उनके कन्धे
समय की गर्द में मैले हो गये थे वह, पूर-के-पूरे,
मैंने उनकी इच्छाओं की दराज़ से
रही-सही उम्मीद की धूप ले लिया
उनकी आँख बचाकर
मुझे कविता की पहली पंक्ति मिल गई,

मैंने माँ की ओर देखा-
बलात्कार से स्वयं को बचाती, थकी-हाँफती
जिंदकी का अविकल अनुवाद हो गयी थी मेरी माँ,
मैंने उसकी जिंदगी के महाकाव्य से
एक दर्द भरा गीत ले लिया
मुझे कविता की दूसरी पंक्ति मिल गई,

मैने बहन की ओर देखा-
मासूम सपनों की पीठ पर चाबुक बरसाये हों जैसे किसी ने,
ऋतु बदलने की अंतहीन प्रतीक्षा थी -
उसकी आँखों में,
मैंने पतझड़ की साँस मांग ली उससे,
मुझे कविता की तीसरी पंक्ति मिल गई,

मैंने पत्नी की ओर देखा-
सदियों से सतायी जा रही औरत की जुबान पर
खट्टी इमली का स्वाद शेष था अभी,
मैंने असकी जीभ से स्वाद चुरा लिया
यह चौथी पंक्ति है कविता की।

रंग-बिरंगे बसंत से छा दो इस कविता को
परोस दो अय्याशों के सामने
आत्मरति के लिए,

कविता बिक गई
घर में रोटी आयी।
रोटी आयी-रोटी आयी।।
नहीं - एक कविता भूख की आँख में
सबने कहा - रोटी एक कविता है।

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