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Sunday, June 19, 2011

अलाव के इर्द-गिर्द !

एक हल्की-सी फुसफुसाहट
उन पपड़ाए होंठों पर
कोई जख्म बना भी ना पाई थी
कि वे आगे हथेलियां गिराकर
प्रश्न चिन्ह बन गए

जब उन्हे बताया गया
कि पाला खाए गांव की ठंडी हवा
आजादी के पच्चीस साल में ही
बदबुआने लगी है
और जानवर तो जानवर
आदमी भी भूख से मरने लगे हैं
समझ को निगल गया है समय
धरती की अंगड़ाई से उठती है
टूटे आदमी के
असामयिक मृत्यु की सोंधी गंध

उन्हे बताया गया
कि लाट के लाट बच्चे
समय काटने के खेल से
पैदा हो रहे हैं
और हर आवश्यकता के पीछे
एक घिनौनी छिपकली
सतह का रंग पकड़े हुए है

तो सब उस बूढ़े के
सठियाए वक्तव्य पर शक करने लगे हैं
जिसमें अपनी पतोहू को घूरते हुए
अभी-अभी परिकथा सुनाई थी
उस बूढ़े की आंखों में
साफ देखा जा सकता था
गुलामी का बाजार भाव

पंचायत में शामिल लोग
अपने बगल में बैठे व्यक्ति को
संदेह से देख रहे थे
वे महसूस कर रहे थे
कि वे जख्मी हैं
उस बूढ़े से भी अधिक
वह अतीत की तरफ
रेंग तो सकता था

एक ऐसे राजा के बारे में
सोच सकता था
जो घोड़े पर चढ़कर
दरवाजे तक आता था
और चाबुक की भाषा में
कानून पढ़ाया करता था

वे निराश हुए
अपने आजाद मुल्क में
उन्होने कई वर्षों से अपने
राजा को देखा तक नहीं
सुना है चील गाड़ी से
उसने उनकी भूख देखी है
देखा है अथाह पानी के बीच
उन्हे बेघर होते
और अपने दुःखी होने की
आकाशवाणी की है

ये कैसा चमत्कारिक उत्तर था
उस बूढ़े का
वह हंसा था सिर्फ हंसा था
और सबको सवालिया निशान बनाकर
अंधेरे में गायब हो गया था

आलाव वैसे ही जल रहा था
तेज पहले से तेज।

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