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Sunday, June 12, 2011

गूंगा आदमी !

अभी-अभी जो बहस में बाहर हो गया
वह एक कमजोर आदमी नहीं था......

मुसलसल अकाल ग्रस्त धरती पर
वह तेज चिलचिलाती धूप में ठूंठ की तरह खड़ा
अपने गुस्से को तूफान में तब्दील होने की
संभावनाएं देखता था

समय हरहराता था जब-जब
और दिशासूचक का रुख खतरे में बदलता था
झुके और बुझे लोगों की आँखों में वह
अपरिचित विश्वास की तरह पैदा होता था

कल के एक इतिहास निर्माता को देखो तो
किस तरह पंचों ने गूंगा बना दिया।
उसकी सुरक्षा में कितने काले कानून रच दिये
उसके परों पर कैंची चलाकर काली किताब
का बयालिसवां सूत्र भी पढ़ाया -

हमारे खिलाफ मत बोलो
हमारे खिलाफ मत सुनो
हमारे खिलाफ मत देखो

वह शब्दों की तरह संसद में उछाला जा रहा है
एक खूंखार पंजा उसे दबोचने की फिराक में है

अंदर-ही-अंदर तैयार आदमी
अमानुषिक यातना के तहत गूंगा हो गया
दूसरे तैयार के लिए बहरा भी
सब जानता है पेड़ बूढ़ा हो गया है
और मौसम में एक दहशत भरी चुप्पी चक्रवात बन रही है

वह जान रहा है कि अब आगे की लड़ाई के लिए शोर नहीं
खुफियागीरी और सांकेतिक भाषा की जरुरत है
यकीनन वह एक कमजोर आदमी नहीं है .........

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