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Monday, March 17, 2014

सच बताना क्या तुम्हे मेरी याद नहीं आती ?

मै बुरी ,बहुत बुरी सही
बच्चों के लिए तो तुम
मेरे पास रह सकते थे...हमेशा...

जिस घर के कोने कोने में
तुम्हारी खुशबू बसी हो,
जहां हम बेबात लड़े झगड़े हों,
अबोला किये रहे हो कई कई दिन तक...
जहां हम उस सच को खोजते रहे
जो सच नहीं था
वहां तुम्हारे क़दमों की आहट सुनाई देती है

तुम्हारी चिड़िया
बहुत मीठा बोलती है
कमरे में चहकता है तुम्हारा क्लोन
सा बहुत मिस करते हैं तुम्हे...
कोई कभी कहीं नहीं जाता
सब रहते हैं एक दुसरे के दिलों में
दुश्मन बनकर ही सही...
मैने खिड़की दरवाज़े खोल दिए है
तुम कब आओगे
रौशनी बनकर...
सच बताना क्या तुम्हे
सचमुच मेरी याद नहीं आती ?


--अजामिल

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