..कविता में कविता बनकर
बिखर रही है कविता...
खनखना रही हैं चूड़ियाँ...
कोई अँगड़ाई ले रहा है
कोई करवट बदल रहा है
यादों के बिस्तर पर सलवटें
चुगली कर रही हैं
कोई ध्यान से सुन रहा है
उसकी खिलखिलाहट...
उसने दियासलाई की डिब्बी में
समेट लिया है खुद को
वह आग बन गई है...
- कविता/अजामिल/28.5.13
बिखर रही है कविता...
खनखना रही हैं चूड़ियाँ...
कोई अँगड़ाई ले रहा है
कोई करवट बदल रहा है
यादों के बिस्तर पर सलवटें
चुगली कर रही हैं
कोई ध्यान से सुन रहा है
उसकी खिलखिलाहट...
उसने दियासलाई की डिब्बी में
समेट लिया है खुद को
वह आग बन गई है...
- कविता/अजामिल/28.5.13
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