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Thursday, November 1, 2012

कविता


चीता

अजामिल

आज जबकि सारा का सारा जंगल आग में है
और खिड़की में मौसम खतरनाक हात्सों के बीच
शहर उजड़ जाने की फ़िक्र में
परेशां मत ही भाई लोगों
वे अभी टोपी और झंडों के रंगों को लेकर
सशंकित हैं/एक बेहतर इस्तेमाल कविता का
वक्त रहते महज़ इतना है कि बारूद के ढेर को
आदमी के सही एहसास में तब्दील किया जाए...
वे जो बेहद टूट गए हैं
गवाही में बार-बार पुकारे जाने वाले कैदी की तरह
ज़रूरी मानकर पांच साला खुराक पर
जिंदा रखे जा रही हैं
इसके पहले कि उनके दिमागों को
पुलिस के बूट तले रौंद कर
नए आयतन में ढाली जाए काली व्यवस्था
हम कायम करें एक समझ कि ताना हुआ आकाश
हमारी सुरक्षा के लिए नहीं
खूंखार पंजों के दबोच में है
और बे मकसद भीड़ के पास कहीं कुछ भी नहीं
सारा कुछ अहसास के खोते जाने का दबाव है...
पेड़ों की तरह चुप मत रहो मत चिल्लाओ नारों की तरह
उनके निशानों से बचो
वे तुम्हे खरीदने के लिए रच डालेंगे
कोई भी नाटक
और मंच पर तुम बहुमत में उठे/निरर्थक/समर्थन/संकेत
ही रह जाओगे/अब तोड़ने ही होंगे ये संस्कार
तुम्हे बनना ही होगा एक आम आदमी का एहसास..
किस कद्र यहाँ जादोगरी चल रही है
और तुम अपने ही घर में खो रहे हो अपनी पहचान
कभी भी वक्त की संगीन
तुम्हारे चूतड़ों में घुसेडी जा सकती है
चिल्लाने से पहले तुम्हारे मुह में ठूसी जा सकती है भूख
तुम्हारी स्कूल जाने वाली बच्ची का कौन जाने कब
वे तुम्हारी बीवी की तरह कर डालेंगे इस्तेमाल
तुम्हारे भाई को बना देंगे खुफिया जासूस
ये देश अब जादूगरों के हाथ में है
बदलो... सही एहसास में बदलो मेरे भाई
तुम धीरे-धीरे ज़हर पीने की प्रक्रिया में हो
इस दमघोटूं अँधेरे में जबकि बाहर
तूफ़ान के आसार हैं अपनी आवाज़ को पहचानो
और शिकार पर जाने से पहले
अपने घरों को बदल दो कारतूस के कारखाने में
वे दिनों दिन हो रहे हैं देशद्रोही
उनकी मुखालफत के लिए तुम्हे बनना ही होगा
बेहद चालाक चीता |

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