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Wednesday, November 2, 2011

युद्ध कहीं भी हो !

युद्ध कहीं भी हो- हमारे भीतर या बाहर-
अपवित्र है
धर्म यहीं से जाता है अधर्म की तरफ !
विध्वंश और सृजनात्मकता के बीच
जिन्हें शान्ति की आकांक्षा है-
वे युद्ध असम्भव करेंगे- पृथ्वी पर
और धर्म के विरुद्ध खड़ा करेंगे-
प्रेम को ! बाहर भी - भीतर भी....
युद्ध कहीं भी हो -

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