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Wednesday, June 8, 2011

नीले फीते में लिखी इबारत !

उस खौफनाक रात को
जबकि हम अपने भीतर के सन्नाटे में
उम्मीदों को एक मासूम औरत-सा लुटता देख रहे थे भाईजान
फहमीदा गली के मोड़ पर कविता-सी कत्ल की जा रही थी

वक्त की छाती पर लिखी
इस खबर के कई जाने-पहचाने मुद्दे हो सकते हैं-
मसलन टकराहट से पूर्व
एक चकमक पत्थर की तलाश / या आदमी का
दियासलाई बना देने का खेल / या आग में हाथ संेकने का
चालाकी भरा उपक्रम
लेकिन यह सच है कि खबर अखबार में लपेटकर
रोटी और हथियार की तरह
दंगाईयों के सामने फेंकी गई थी.........

अनुमान की भयावह स्थिति में
वे सब भूमिका बन गए - जब मैं मासूम-सी कवि संवेदनाओं
की ऊंगली पकड़े गाँव में दाखिल हुआ
कविता सही लोगों तक पहुँची थी - फिक्र यह होकर मुझे
सुलगने का रास्ता तलाश करते हुए
नीली आँखों वाली चिड़िया को
गोली मार देने का मकसद समझना था

कविता में गुस्सा था
और सही आदमी की बेचैनी भी /
भाई जान / कोई भी शक्ल अख्तियार करने से पहले
पेड़ सीधे-सीधे नहीं होता - एक बीज होता है.........
जैसा कविता सिर्फ कविता है
आल्हा ऊदल या किस्सा तोता मैंना की तरह
बाँची जा सकती है - अलाव सेंकते हुए -

मेरी कविता गाँव में थी
लेकिन आदमी आदमी की भीड़ में आदमी को खोजता हुआ
कविता से बाहर था वह आदमी
कविता जो मेरी तकलीफों की राजदां है
आदमी के प्रति आदमी हो जाने की संभावना देती है
कुर्सियां नहीं जानती कि
ख्ंिाचाई - खरोंच का खेल कविता की
छाती पर रेखांकित होता है लेकिन
सरे बाजार लूट ली जाती है कविता

हमें कविता को बचाना है भाई जान -
आमी को बचाने के लिए..................

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